Parivartini Ekadashi का विशेष महत्व है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया था और इसी दिन शयनावस्था के दौरान करवट (परिवर्तन) भी किया था। आज हम जानेंगे Parivartini Ekadashi (पार्श्व एकादशी) का महत्व और उससे जुड़ी दिव्य कथा।
मनुष्य जीवन कोई साधारण यात्रा नहीं है। यह उस आत्मा की मंज़िल है, जो करोड़ों योनियों के बाद इस धरती पर मानव रूप में आती है। जब आत्मा को यह शरीर मिलता है, तब मानो स्वयं परमात्मा ने हमारे सिर पर करुणा का हाथ रख दिया हो।
यह जीवन… हर सांस, हर क्षण… एक अवसर है। अवसर पापों से मुक्त होने का, पुण्य अर्जित करने का और अपनी आत्मा को भगवान से जोड़ने का। लेकिन यह तभी संभव है, जब हम समझें कि इस जीवन का असली मूल्य क्या है।
और इस आत्मिक भूख को शांत करने का सबसे सरल मार्ग है — एकादशी।
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ToggleParivartini Ekadashi का महत्व
Parivartini Ekadashi कोई साधारण दिन नहीं है। यह एक ऐसा द्वार है जो हमें सांसारिक मोह-माया से निकालकर भक्ति की आलोकमयी दुनिया में ले जाता है।
शास्त्र कहते हैं कि एकादशी का व्रत करने से शरीर शुद्ध होता है, मन स्थिर होता है और आत्मा भगवान के और भी निकट जाती है।
हर एकादशी एक नई शुरुआत है — एक नए संकल्प और नई यात्रा का।
इन्हीं में विशेष है — भाद्रपद शुक्ल पक्ष की Parivartini Ekadashi (परिवर्तनी एकादशी)।
शास्त्रों के अनुसार देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और Parivartini Ekadashi के दिन करवट बदलते हैं।
यह केवल शारीरिक परिवर्तन नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक परिवर्तन है।
यही कारण है कि Parivartini Ekadashi का महत्व अत्यंत विशेष माना जाता है।
Parivartini Ekadashi की कथा -वामन अवतार की कथा
इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया था। कथा है महान दानी असुरराज बलि महाराज की। बलि ने तप, बल और दान से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था और देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया था। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान ने अदिति के गर्भ से जन्म लिया और छोटे से ब्राह्मण बालक के रूप में बलि के यज्ञ में पहुँचे।
भव्य यज्ञ चल रहा था। अग्निकुंड की आहुति से आकाश तक ज्योति फैल रही थी। तभी द्वार पर तेजस्वी ब्राह्मण बालक प्रकट हुआ।
बलि ने प्रणाम कर कहा —
“ब्राह्मण देव! जो भी चाहें, निःसंकोच मांग लीजिए।”
वामन मुस्कराए और बोले —
“राजन, मुझे बस तीन पग भूमि चाहिए।”
गुरु शुक्राचार्य ने चेताया —
“राजन! यह साधारण बालक नहीं, स्वयं भगवान विष्णु हैं।”
लेकिन बलि अडिग रहे। उन्होंने कहा —
“यदि यह ब्राह्मण हैं, तो तीन पग भूमि ही लेंगे। और यदि भगवान हैं, तो मुझे लूट लें। परंतु मैं दान से पीछे नहीं हटूँगा।”
तभी वामन ने विराट रूप धारण कर लिया।
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एक पग में पूरी पृथ्वी नापी।
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दूसरे पग में पूरा आकाश।
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अब तीसरे पग के लिए कोई स्थान शेष न रहा।
तब बलि ने सिर झुका दिया और कहा —
“भगवन, तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए।”
भगवान प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया —
“बलि, तुम पाताल लोक के राजा बनोगे और तुम्हारे द्वार पर मैं स्वयं प्रहरी बनकर रहूँगा।”
यही नहीं, माता लक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बाँधा और भगवान को वैकुंठ लौटने का अवसर मिला।
यही रक्षा बंधन पर्व की भी उत्पत्ति मानी जाती है।
Parivartini Ekadashi का महत्व और संदेश
शास्त्रों में कहा गया है कि Parivartini Ekadashi का महत्व अपार है।
Parivartini Ekadashi व्रत को करने से जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, जीवन में संतुलन आता है और भगवान की कृपा बरसती है।
यह व्रत केवल भोजन का त्याग नहीं है, बल्कि भीतर की अशुद्धियों — क्रोध, लोभ, ईर्ष्या और छल का उपवास है।
Parivartini Ekadashi केवल एक तिथि नहीं, यह एक अवसर है — अपने जीवन की दिशा बदलने का, आत्मा को शुद्ध करने का और भगवान से जुड़ने का।
हरे कृष्णा।
परिवर्तनी एकादशी की जय