Navratri 2025: नौ दिनों का पावन पर्व, विस्तृत पूजन विधि और कन्या पूजन का महत्व

Navratri celebration with Goddess Durga, nine forms, Kalash Sthapana, and Kanya Poojan rituals

भारतीय संस्कृति में Navratri  का पर्व अपने आप में एक विशिष्ट स्थान रखता है। यह केवल नौ दिनों का उत्सव नहीं, बल्कि देवी के नौ रूपों की आराधना, तपस्या और आत्मशुद्धि का महापर्व है। आइए, जनमेजय और महर्षि व्यास के संवाद के माध्यम से इस पर्व की गहराई में उतरते हैं और जानते हैं इसकी संपूर्ण विधि एवं महत्व।

एक बार राजा जनमेजय ने महर्षि व्यास से पूछा, “हे द्विजश्रेष्ठ! Navratri  के आने पर और विशेष करके शारदीय Navratri में क्या करना चाहिए? उसका विधान आप मुझे भलीभाँति बताइये।”

महर्षि व्यास ने उत्तर दिया, “हे राजन! अब मैं पवित्र Navratri  व्रत के विषय में बता रहा हूँ, सुनिए। शरत्काल के नवरात्र में विशेष करके यह व्रत करना चाहिए। उसी प्रकार प्रेमपूर्वक वसंत ऋतु के नवरात्र में भी इस व्रत को करे।”

Navratri  (नवरात्रि) का अर्थ है नौ रातें। यह पर्व साल में दो बार आता है—

  1. चैत्र नवरात्रि (वसंत ऋतु)

  2. शारदीय नवरात्रि (शरद ऋतु)

शास्त्रों में इन दोनों ऋतुओं को यमदंष्ट्रा कहा गया है, यानी ये रोग और कष्ट बढ़ाने वाले समय होते हैं। इसलिए, आत्मकल्याण के इच्छुक व्यक्ति को इन ऋतुओं में नवरात्रि व्रत अवश्य करना चाहिए।

नवरात्रि की शुरुआत सही तैयारी से होती है। अमावस्या के दिन ही ब्रत की सभी शुभ सामग्री एकत्रित कर लेनी चाहिए। उस दिन एकभुक्त व्रत (दिन में एक बार भोजन) करके हविष्य (सात्विक भोजन) ग्रहण करना चाहिए।

प्रतिपदा का दिन: गुरु आह्वान और कलश स्थापना (Ghatasthapana Vidhi / Kalash Sthapana Vidhi)

1st day of Navratri यानी प्रतिपदा का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन प्रातःकाल नदी, तालाब या घर पर ही स्नान आदि से निवृत्त होकर, देवी तत्व के ज्ञाता, सदाचारी, संयमी और वेद-वेदांग के पारंगत ब्राह्मणों को आमंत्रित करना चाहिए। उनका वरण करके मधुपर्क (शहद और दूध का मिश्रण), अर्घ्य-पाद्य (जल और स्नान सामग्री) आदि अर्पण करें। अपनी शक्ति के अनुसार उन्हें वस्त्र, अलंकार आदि प्रदान करें। धन रहते हुए इस काम में कृपणता नहीं करनी चाहिए।

देवी प्रतिमा या यंत्र की स्थापना:

वेदी पर पहले रेशमी वस्त्र से आच्छादित एक सुंदर सिंहासन स्थापित करें। उस पर चार भुजाओं वाली, आयुधों से युक्त भगवती की प्रतिमा प्रतिष्ठित करें। प्रतिमा रत्नमय भूषणों से अलंकृत, मोतियों की माला से सुसज्जित, दिव्य वस्त्रों से विभूषित, शुभलक्षणों से युक्त और सौम्य आकृति वाली हो।

कल्याणमयी भगवती अपने शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हों तथा सिंह पर आरूढ़ हों। यदि उपलब्ध हो, तो अठारह भुजाओं से सुशोभित सनातनी देवी की प्रतिमा भी प्रतिष्ठित की जा सकती है। यदि प्रतिमा का अभाव हो तो नवार्ण-मंत्रयुक्त यंत्र को पीठ पर स्थापित करें . (नवार्ण मंत्रयुक्त यंत्र-आमतौर पर यह यंत्र ताम्रपत्र (तांबे की पट्टी), भोजपत्र, अथवा कागज़ पर लाल चंदन/अष्टगंध से बनाया जाता है।)

कलश स्थापना (Kalash Sthapana Vidhi):

Navratri Kalash Sthapana with coconut, mango leaves, and diya

नवरात्रि पूजा में कलश स्थापना (Kalash Sthapana) का विशेष महत्व है। कलश, जो देवी शक्ति का प्रतीक है, पूजा स्थल पर प्रतिमा या मंत्र यंत्र के पीठ (पीछे) में स्थापित किया जाता है। इसे पीठ-पूजा (Peeth-Pooja) कहा जाता है। पीठ-पूजा का उद्देश्य कलश या प्रतिमा को स्थिर करना और देवी की शक्ति को सम्पूर्ण रूप से सक्रिय करना है। 

कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री में कलश (तांबे, पीतल, मिट्टी या स्टील का), पंचपल्लव (जैसे आम, पीपल, बरगद, अमरूद और नीम के पत्ते), शुद्ध जल, नारियल, नवार्ण मंत्रयुक्त यंत्र (यदि मूर्ति न हो), फूल, धूप, दीप, चावल, अक्षत और मौसमी फल शामिल हैं।

पूजा स्थल को पहले पवित्र और साफ किया जाता है। प्रतिमा या मंत्र यंत्र को स्थिर स्थान पर स्थापित करने के बाद, पीठ के पीछे कलश रखा जाता है। इस कलश में जल और पंचपल्लव रखकर उसके ऊपर नारियल रखा जाता है और इसे लाल या पीली वस्त्र से ढककर फूल, मालाएँ और अन्य सुगंधित सामग्री से सजाया जाता है। पीठ-पूजा के दौरान वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए अर्घ्य, दीप और धूप अर्पित किया जाता है, जिससे कलश और प्रतिमा दोनों की शक्ति पूरी तरह सक्रिय हो जाती है।

पीठ-पूजा का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह दर्शाता है कि साधक देवी की ऊर्जा के हर हिस्से का सम्मान कर रहा है। पीठ पर कलश स्थापित करने से पूजा स्थिर और पूर्ण बनती है, और यह देवी की कृपा, संपत्ति, सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और शत्रुओं से सुरक्षा का प्रतीक बनता है। नवरात्रि में इस पीठ-कलश के साथ प्रतिदिन त्रिकाल पूजा, भजन, वादन और नृत्य द्वारा उत्सव मनाना अत्यंत शुभ माना जाता है।

Navratri पूजन की विधि: एक भक्ति का सागर

सबसे पहले उपवास, एकभुक्त या नक्त व्रत में से किसी एक नियम का पालन करने के बाद ही पूजा आरंभ करें। पूजन से पहले प्रार्थना करें: “हे माता जगदम्बे! मैं यह नवरात्र व्रत करूँगा।/करूँगी हे देवि! आप मेरी सम्पूर्ण कार्य में सहायता करें।”

इसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ विधिवत् भगवती का पूजन करें। चन्दन, अगरु, कपूर, मन्दार, करंज, अशोक, चम्पा, मालती, ब्राह्मी आदि सुगंधित पुष्पों, बिल्वपत्र और धूप-दीप से देवी जगदम्बा का पूजन करें। नारियल, नींबू, अनार, केला, संतरा, कटहल और बिल्वफल आदि अनेक प्रकार के फलों के साथ भक्तिपूर्वक अन्न का नैवेद्य अर्पित करें।

होम के लिए त्रिकोण कुंड बनाएं। प्रतिदिन भगवती का प्रातः, मध्याह्न और सायं – त्रिकाल पूजन करें और गायन, वादन तथा नृत्य के द्वारा महान उत्सव मनाएं।

प्रतिदिन भगवती का त्रिकाल पूजन (प्रातः, सायं और मध्याह्न) करना आवश्यक है। इस अवसर पर गायन, वादन और नृत्य द्वारा महान् उत्सव का आयोजन करना चाहिए।

ब्रती कन्याओं का भी नित्य पूजन किया जाना चाहिए। प्रतिदिन एक कन्या का पूजन करें, या उनकी संख्या के अनुसार वृद्धिक्रम से, या प्रतिदिन दुगुने-तिगुने कन्याओं का पूजन करें। प्रत्येक दिन नौ कन्याओं का पूजन करना भी उचित माना गया है।

अपने धन-सामर्थ्य के अनुसार भगवती की पूजा करें, किंतु हे राजन्! देवी के यज्ञ में धन की कृपणता न करें।

नौ दिन, नौ स्वरूप: 9 Colours of Navratri

Navratri nine forms of Goddess Durga with lion and divine aura

9 Colours of Navratri हमें न केवल नवरात्रि के त्योहार की भव्यता दिखाते हैं, बल्कि हर रंग का अपने आप में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। नवरात्रि के नौ दिनों में हर दिन देवी के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है और उस दिन का रंग उसकी विशेष शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यहाँ नौ दिनों के रंग, देवी स्वरूप और पूजा विधि का विवरण दिया गया है:

1st Day of Navratri (प्रतिपदा)

शैलपुत्री माता (सफेद रंग): पहले दिन शैलपुत्री माता की पूजा होती है। सफेद रंग शांति, पवित्रता और शक्ति का प्रतीक है। श्रद्धालु उपवास रखते हैं और माता की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीपक जलाकर पूजा करते हैं। घटस्थापना विधि के अनुसार कलश स्थापित किया जाता है और उसकी पीठ पर पूजा कर देवी की शक्ति को स्थिर किया जाता है।

2nd Day of Navratri (द्वितीया)

ब्रह्मचारिणी माता (लाल रंग): लाल रंग उत्साह, साहस और आत्मविश्वास का प्रतीक है। भक्त माता से मानसिक शक्ति और स्थिरता प्राप्त करने के लिए उपवास और पूजा करते हैं।

3rd Day of Navratri (तृतीया)

चंद्रघंटा माता (नीला रंग): नीला रंग खुशी, समृद्धि और आत्मविश्वास का प्रतीक है। चंद्रघंटा माता साहस और ऊर्जा की देवी हैं। इस दिन विशेष विधि से पूजा और भजन-कीर्तन किया जाता है।

4th Day of Navratri (चतुर्थी)

कुश्मांडा माता (पीला रंग): पीला रंग स्वास्थ्य, समृद्धि और जीवन में संतुलन का प्रतीक है। कुश्मांडा माता सृष्टि की रचनात्मक शक्ति की देवी हैं।

5th Day of Navratri (पंचमी)

स्कंदमाता माता (हरा रंग): हरा रंग शांति, समृद्धि और स्नेह का प्रतीक है। स्कंदमाता माता ज्ञान और करुणा की देवी हैं।

6th Day of Navratri (षष्ठी) 

कात्यायनी माता (नारंगी रंग): नारंगी रंग स्थिरता, धैर्य और मानसिक संतुलन का प्रतीक है। कात्यायनी माता शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी हैं।

7th Day of Navratri (सप्तमी) 

कालरात्रि माता (मोरहरा हरा / काला रंग): काला या मोरहरा हरा रंग शक्ति, साहस और नकारात्मक ऊर्जा के नाश का प्रतीक है। कालरात्रि अज्ञानता के अंधकार को मिटाने वाली देवी हैं।

8th Day of Navratri (अष्टमी) 

महागौरी माता (गुलाबी रंग): गुलाबी रंग सौंदर्य, प्रेम और करुणा का प्रतीक है। महागौरी माता शांति और पवित्रता की देवी हैं।

9th Day of Navratri (नवमी) 

सिद्धिदात्री माता (लाल और नारंगी रंग): लाल और नारंगी रंग आध्यात्मिक शक्ति और उत्साह का प्रतीक हैं। सिद्धिदात्री माता सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी हैं।

कन्या पूजन: नवरात्रि की परिणति (Kanya Poojan)

Navratri Kanya Poojan ritual with little girls and prasad

नवरात्रि का सबसे महत्वपूर्ण और हृदयस्पर्शी अंग है कन्या पूजन। ब्रती को नित्य भूमि पर सोना चाहिए और वस्त्र, आभूषण तथा दिव्य भोजन आदि से कुमारी कन्याओं का पूजन करना चाहिए।

पूजन की विधि इस प्रकार है: प्रतिदिन एक कन्या का पूजन करें, या फिर संख्या बढ़ाते हुए (पहले दिन एक, दूसरे दिन दो…) करें, या फिर प्रतिदिन नौ कन्याओं का पूजन करें।

कन्या के चयन का विधान:
कुमारी कन्या वह कहलाती है जो दो वर्ष की हो चुकी हो। विभिन्न आयु की कन्याओं के अलग-अलग नाम और महत्व हैं:

  • दो वर्ष की कन्या: कुमारी – दुःख और दरिद्रता का नाश करती है।

  • तीन वर्ष की: त्रिमूर्ति – धर्म, अर्थ, काम की पूर्ति करती है।

  • चार वर्ष की: कल्याणी – विद्या, विजय और राज्य देने वाली।

  • पांच वर्ष की: रोहिणी – रोगनाश करने वाली।

  • छह वर्ष की: कालिका – शत्रुओं का नाश करती है।

  • सात वर्ष की: चंडिका – धन और ऐश्वर्य देने वाली।

  • आठ वर्ष की: शाम्भवी – विजय और सम्मोहन देने वाली।

  • नौ वर्ष की: दुर्गा – शत्रु विनाश और मोक्ष देने वाली।

  • दस वर्ष की: सुभद्रा – मनोरथ सिद्धि करने वाली।

इन कन्याओं का पूजन करते समय संबंधित मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए, जैसे: “जो भगवती कुमारी के रूप में हैं, उनका मैं पूजन करता हूँ…”

अष्टमी और नवमी का विशेष महत्व

यदि कोई व्यक्ति पूरे नवरात्र पूजा नहीं कर सकता, तो उसे 8th day of Navratri अष्टमी के दिन विशेष रूप से अवश्य पूजन करना चाहिए। प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने वाली भद्रकाली करोड़ों योगिनियों के साथ अष्टमी को ही प्रकट हुई थीं। इस दिन विविध उपहार, हवन, ब्राह्मण-भोजन आदि से देवी को प्रसन्न करें।

भक्तिभाव से केवल सप्तमी, अष्टमी और नवमी – इन तीन रात्रियों में देवी की पूजा करने से भी सभी फल प्राप्त हो जाते हैं। पूजन, हवन, कुमारी-पूजन और ब्राह्मण-भोजन से नवरात्र व्रत पूरा होता है।

नवरात्रि व्रत का फल: जीवन के चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति

यह Navratri  व्रत धन-धान्य, सुख, संतान, आयु, आरोग्य देने वाला और स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है। जिसने इस व्रत को किया, वह इस लोक में सभी सुख भोगकर परलोक में आनंद पाता है। विद्या चाहने वाला विद्या, और राज्य खोया हुआ राजा फिर से राज्य पा लेता है।

महर्षि व्यास कहते हैं कि जिन लोगों ने पूर्वजन्म में यह व्रत नहीं किया, वे इस जन्म में रोगी, दरिद्र और संतानहीन होते हैं। जो स्त्री वंध्या या विधवा है, उसके विषय में यही अनुमान लगाना चाहिए कि उसने पूर्वजन्म में यह व्रत नहीं किया था।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित सभी देवगण भी देवी चंडिका का ध्यान करते हैं, तो फिर मनुष्य को तो अवश्य ही इस पर्व का पालन करना चाहिए। यह व्रत सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाला और चारों पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – प्रदान करने वाला है।

Navratri  का पर्व हमें यही संदेश देता है कि ईमानदारी से की गई भक्ति और सही विधि-विधान से किया गया अनुष्ठान, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हों, माँ भगवती की कृपा अवश्य दिलाता है।

आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं!
जय माता दी!

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