Yogini Ekadashi Vrat Katha: योगिनी एकादशी

Yogini Ekadashi story scene with Krishna, Yudhishthira, sage Markandeya, and Hemamali in a divine forest setting

हिंदू धर्म में साल भर में 24 एकादशियाँ आती हैं — और हर एकादशी का अपना महत्व होता है।
लेकिन इन सब में Yogini Ekadashi (योगिनी एकादशी) को खास क्यों माना गया है? 

कहा गया है कि यह एक व्रत नहीं, मोक्ष का द्वार है — जो जन्म-जन्मांतर के पापों को नष्ट कर देता है।  क्या आप जानते हैं कि Yogini Ekadashi (योगिनी एकादशी) की कथा सुनने और इसका व्रत रखने से जीवन के गहरे दुख कैसे मिटते हैं?  आज हम जानेंगे इस दिव्य व्रत की प्रेरणादायक कहानी और इसका आध्यात्मिक रहस्य.

एक बार युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा — “हे प्रभु! आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है और उसका क्या महत्व है?”

भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले:  “हे राजन! इस एकादशी का नाम है Yogini Ekadashi (योगिनी एकादशी)।

Yogini Ekadashi (योगिनी एकादशी) की प्रेरणादायक कथा

Kubera waiting on his throne as Hemamali offers flowers to Vishalakshi in Alakapuri – scene from Yogini Ekadashi story.

Yogini Ekadashi (योगिनी एकादशी) व्रत न केवल सभी पापों से मुक्त करता है, बल्कि व्यक्ति को भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करता है। 

स्वर्गलोक की अलकापुरी नगरी में कुबेर का राज्य था। वे भगवान शिव के उपासक थे और रोज़ सुंदर फूलों से शिवजी की पूजा करते थे। ये फूल हेममाली नाम के यक्ष द्वारा मानसरोवर से लाए जाते थे। हेममाली की पत्नी विशालाक्षी अति सुंदर थी, और वह उससे बहुत प्रेम करता था।

एक दिन वह पुष्प लाने के बाद अपनी पत्नी के साथ रमण करने में इतना मग्न हो गया कि कुबेर की सेवा में विलंब हो गया। कुबेर ने जब यह सुना कि उसका सेवक धर्म और कर्तव्य भूलकर पत्नी में लिप्त है, तो क्रोधित होकर उसे श्राप दे दिया:

“तू स्त्री वियोग का दुख भोगेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी बनेगा।”

श्राप से हेममाली स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरा और तुरंत उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी पत्नी भी अंतर्ध्यान हो गई। अब वह एकाकी, दुःखी, और रोगी बनकर जंगल-जंगल भटकने लगा।
लेकिन… उसका भाग्य बदला एक संत के दर्शन से।

एक दिन वह महर्षि मार्कंडेय के आश्रम पहुंचा। उसकी दुर्दशा देखकर करुणामयी ऋषि ने पूछा, “हे पुत्र, तू इतना दुखी क्यों है?”
हेममाली ने रोते हुए सब कुछ सच-सच कह सुनाया। ऋषि ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा:

“आषाढ़ कृष्ण पक्ष की Yogini Ekadashi (योगिनी एकादशी) का व्रत कर, तेरा उद्धार होगा।”

हेममाली ने विधिपूर्वक उपवास किया, भगवान का स्मरण किया, और पूर्ण श्रद्धा से व्रत रखा।
परिणाम?
उसका कोढ़ पूरी तरह समाप्त हो गया। उसका शरीर पुनः सुंदर हो गया, वह अपनी पत्नी से मिला, और फिर से सुखी जीवन जीने लगा। कुबेर भी यह देखकर आश्चर्यचकित हुए और स्वयं Yogini Ekadashi (योगिनी एकादशी)  व्रत का पालन करने लगे।

निष्कर्ष

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा:  “इस व्रत का फल 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने से भी अधिक है। इससे व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होता है और कभी धन की कमी नहीं आती।

Yogini Ekadashi (योगिनी एकादशी) हमें सिखाती है कि —

  • कोई भी पापी हो, यदि वह सच्चे मन से भगवान की शरण ले और व्रत के माध्यम से आत्मशुद्धि करे, तो उसका उद्धार संभव है।

  • कर्तव्यों की उपेक्षा, चाहे वह सेवा हो या भक्ति — उसका परिणाम हमें भोगना पड़ता है।

  • एकादशी व्रत न केवल शरीर और मन को शुद्ध करता है, बल्कि आत्मा को भी दिव्यता की ओर ले जाता है।

इसलिए,
👉 इस पावन दिन पर भक्ति, सेवा, व्रत, और ध्यान के माध्यम से अपने जीवन को पवित्र बनाएं।
👉 भगवान विष्णु की कृपा पाने का यह अद्भुत अवसर है।

आप सभी को Yogini Ekadashi (योगिनी एकादशी) की हार्दिक शुभकामनाएं।
धन्यवाद। राधा राधा ।हरे कृष्णा।

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