हर महीने आने वाली 24 एकादशियों में से Rama Ekadashi को विशेष रूप से फलदायी माना गया है। कहते हैं कि इस दिन किया गया Ekadashi Vrat न केवल पापों को मिटाता है, बल्कि व्यक्ति को मोक्ष का मार्ग भी प्रदान करता है।
आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं Rama Ekadashi Vrat Katha जो राजा मुचकुंद, राजकुमारी चंद्रभागा और राजकुमार शोभन की अद्भुत कथा पर आधारित है।
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ToggleRama Ekadashi Vrat Katha: राजा मुचकुंद और राजकुमार शोभन की कथा
पुराणों में उल्लेख आता है कि सूर्यवंश के महापुरुष राजा मुचकुंद के राज्य में धर्म, करुणा और संयम का शासन था। उनकी एक सुपुत्री थी राजकुमारी चंद्रभागा, जो रूप में चंद्रमा के समान और आचरण में माता तुलसी जैसी पवित्र थी।
राज्य में एक विशेष नियम था— Ekadashi के दिन कोई भी व्यक्ति अन्न, जल या फल तक ग्रहण नहीं करता था। यह परंपरा नियम नहीं बल्कि जीवन का हिस्सा बन चुकी थी।
राजकुमारी चंद्रभागा का विवाह राजकुमार शोभन से हुआ। शोभन सुंदर और बुद्धिमान थे, परंतु उनका शरीर दुर्बल था। विवाह के कुछ ही समय बाद Rama Ekadashi का पावन दिन आया।
राजकुमार शोभन का व्रत और आत्मबल
सुबह होते ही चंद्रभागा ने प्रेम से अपने पति से कहा —“स्वामी, आज रमा एकादशी है। हमारे कुल में इस दिन कोई अन्न ग्रहण नहीं करता।”
शोभन मन ही मन दुविधा में थे — शरीर कमजोर था, पर श्रद्धा अपार। उन्होंने कहा,
मैं व्रत करूंगा, किंतु यदि शरीर साथ न दे तो मुझे क्षमा करना।”
राजकुमार ने पूरे मन से Rama Ekadashi Vrat रखा। दिन बीता, रात आई — शरीर शिथिल होने लगा। व्रत की अग्नि प्राणों को जलाने लगी और रात्रि के अंत में शोभन ने अपने प्राण त्याग दिए।
व्रत का चमत्कारी परिणाम: मंदराचल पर्वत पर दिव्य राज्य
राजमहल में शोक छा गया, पर चंद्रभागा ने अपने धर्म को नहीं छोड़ा। उसने अपने प्रेम, निष्ठा और तप को भगवान को समर्पित कर दिया।
व्रत के पुण्य प्रभाव से राजकुमार शोभन को मंदराचल पर्वत पर एक दिव्य राज्य प्राप्त हुआ — स्वर्ण महलों, आकाशीय रथों और देवांगनाओं से सुसज्जित।
एक दिन राजऋषि मंडप मंदराचल की यात्रा पर गए और शोभन को उस दिव्य राज्य में देखा। उन्होंने पूछा —“हे राजकुमार, आपने यह अद्भुत वैभव कैसे प्राप्त किया?”
शोभन बोले —“मैंने केवल एक बार Rama Ekadashi का व्रत किया था। भले ही मेरा शरीर साथ न दे पाया हो, पर मन से मैंने व्रत पूरा किया। उसी पुण्य से मुझे यह राज्य प्राप्त हुआ।”
चंद्रभागा का पुनर्मिलन और व्रत की महिमा
ऋषि मंडप ने यह कथा चंद्रभागा को सुनाई। उसकी आंखों में प्रेम और आंसू दोनों भर आए। उसने निश्चय किया कि वह भी उसी धाम में जाएगी।
तपस्या और भक्ति के माध्यम से चंद्रभागा मंदराचल पर्वत पहुंची — और वहां अपने पति शोभन से पुनर्मिलन हुआ। उस क्षण से शोभन का राज्य स्थायी हो गया।
इस दिन व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है।
Ekadashi Vrat Katha सुनने और सुनाने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जो श्रद्धा से Rama Ekadashi Vrat करता है, उसे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
यह व्रत दीपावली से पहले आने के कारण और भी शुभ माना गया है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन Bhagwan Vishnu का पूजन करता है, उसके जीवन में लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है।
Conclusion: श्रद्धा, भक्ति और प्रेम का पर्व
Rama Ekadashi केवल एक व्रत नहीं, बल्कि श्रद्धा, प्रेम और आत्मबल का प्रतीक है।
राजकुमार शोभन की कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति शरीर से नहीं, मन और संकल्प से होती है।
इस Vrat Katha से हमें यही संदेश मिलता है कि जब हम प्रेम और आस्था से भगवान का स्मरण करते हैं, तब स्वयं भगवान हमारे जीवन को प्रकाशमय कर देते हैं।
Wish You All a Very Happy Rama Ekadashi!
हरे कृष्ण ! राधे राधे !
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