क्या आप जानते हैं कि केवल एक दिन का व्रत आपके जीवन के पापों को हर सकता है और मोक्ष का द्वार खोल सकता है? हमारे सनातन धर्म में एक ऐसी तिथि है जिसे स्वयं भगवान विष्णु अत्यंत प्रिय मानते हैं — एकादशी। लेकिन एकादशी में भी एक विशेष तिथि है, जो मोह को हरने वाली, जीवन को निर्मल बनाने वाली और आत्मा को प्रभु के परमधाम तक पहुंचाने वाली है — Mohini Ekadashi (मोहिनी एकादशी) । आज हम जानेंगे इसकी प्रेरणादायक पौराणिक कथा, वैज्ञानिक महत्व और आत्मशुद्धि की शक्ति से भरपूर इसकी अनुपम महिमा।

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ToggleMohini Ekadashi व्रत कथा
आज हम जिस विशिष्ट एकादशी की कथा सुनने जा रहे हैं वह है – Mohini Ekadashi (मोहिनी एकादशी) । एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे जनार्दन! वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है और उसकी क्या महिमा है?” भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया – “हे राजन! उस एकादशी का नाम Mohini Ekadashi (मोहिनी एकादशी) है। यह व्रत समस्त पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला है। इसकी महिमा अनंत है।”
इसके पीछे की पौराणिक कथा इस प्रकार है:
बहुत पहले भद्रावती नामक एक नगरी में चंद्रवंशी राजा धतिमान राज्य करते थे। वे अत्यंत धर्मात्मा और प्रजावत्सल राजा थे। उनके राज्य में धनपाल नामक एक वैश्य रहता था, जो धर्म-कर्म में सदा संलग्न रहता था। उसके पाँच पुत्र थे, जिनमें सबसे छोटा पुत्र था दृष्टबुद्धि। दुर्भाग्यवश, दृष्टबुद्धि अपने नाम के विपरीत आचरण करता था — वह व्यसनों में लिप्त, बुरी संगति वाला, माता-पिता का अनादर करने वाला और देवताओं का विरोधी बन चुका था।
धीरे-धीरे वह चोरी, दुराचार और हिंसा जैसे पापों में भी लिप्त हो गया। अंततः उसके कुकर्मों से तंग आकर उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया। वह युवक जंगलों में भटकता रहा — भूखा, प्यासा, दुर्बल और अत्यंत दुखी।
एक दिन वह महर्षि कौडिन्य के आश्रम पहुँचा। उसकी दयनीय स्थिति देखकर ऋषि ने करुणा से पूछा, “वत्स! तुम कौन हो और इतनी दयनीय दशा में क्यों हो?” दृष्टबुद्धि ने अपनी समूची व्यथा उन्हें सुनाई। तब ऋषि बोले, “वत्स! तुम्हारे पाप बहुत बड़े हैं, परंतु यदि तुम श्रद्धा और नियमपूर्वक वैशाख शुक्ल पक्ष की Mohini Ekadashi (मोहिनी एकादशी) का व्रत करोगे तो अवश्य ही मुक्त हो जाओगे।”
दृष्टबुद्धि ने महर्षि के कहे अनुसार व्रत का पालन किया। उसने विधिपूर्वक स्नान किया, उपवास रखा, भगवान विष्णु की पूजा और ध्यान किया तथा रात्रि जागरण भी किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके समस्त पाप नष्ट हो गए। कुछ समय पश्चात जब उसकी मृत्यु हुई, तो वह भगवान विष्णु के परम धाम – वैकुण्ठ को प्राप्त हुआ।
अब प्रश्न उठता है — इस एकादशी का नाम मोहिनी क्यों पड़ा?
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि जब समुद्र मंथन हुआ था और देवताओं व असुरों के बीच अमृत को लेकर संघर्ष हुआ, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके असुरों को मोहित कर दिया और अमृत देवताओं को प्रदान किया। यही कारण है कि इस एकादशी को Mohini Ekadashi (मोहिनी एकादशी) कहा जाता है — क्योंकि यह मोह यानी माया और भौतिक बंधनों को हरती है और जीव को भक्ति के मार्ग से मोक्ष की ओर ले जाती है।
शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि एकादशी का व्रत करने से करोड़ों तीर्थों का पुण्य प्राप्त होता है। समस्त पापों से मुक्ति मिलती है, आत्मा को शांति मिलती है, और अंततः जीव भगवान विष्णु के परम धाम को प्राप्त करता है। इतना ही नहीं, जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से Mohini Ekadashi (मोहिनी एकादशी) की यह कथा मात्र सुन लेता है, उसके भी जीवन के समस्त संकट मिट जाते हैं। वह जीवन में प्रकाश, स्थिरता और परम भगवान श्रीकृष्ण की कृपा का पात्र बन जाता है।
मोह से मुक्ति का पथ — मोहिनी एकादशी की शक्ति
मोहिनी एकादशी की कथा केवल एक धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, अनुशासन और प्रभु भक्ति की जीवंत प्रेरणा है। दृष्ट बुद्धि जैसे पापमय जीवन में भी मोक्ष का द्वार खुल सकता है, यदि श्रद्धा और नियमपूर्वक एकादशी का पालन किया जाए। इस पावन व्रत से न केवल हमारे पापों का नाश होता है, बल्कि मन, शरीर और आत्मा को भी नई ऊर्जा मिलती है। मोहिनी एकादशी वास्तव में ‘मोह’ यानी भौतिक बंधनों को हरने वाली है — जो जीव को इस संसार से निकालकर प्रभु विष्णु के नित्यधाम वैकुण्ठ की ओर ले जाती है।
इसलिए, आइए हम सभी इस व्रत को न केवल एक परंपरा के रूप में, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना के रूप में अपनाएं। श्रद्धा से सुनें, मन से समझें और भक्ति से इस दिव्य तिथि का पालन करें — ताकि जीवन के अंधकार में भी भक्ति का प्रकाश जलता रहे।
हरे कृष्णा।
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