Ekadashi Katha : Vijaya Ekadashi 2025: विजया एकादशी की पौराणिक कथा और महत्व

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महाभारत के समय, जब अर्जुन कुरुक्षेत्र में धर्म और अधर्म के गूढ़ रहस्यों को समझ रहे थे, तब उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से जीवन, भक्ति और मोक्ष के विषय में कई प्रश्न पूछे। विभिन्न धर्म विषयों पर चर्चा के दौरान, श्री कृष्ण ने उन्हें एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया। इस पवित्र व्रत की महिमा सुनकर अर्जुन आनंदित हो उठे और श्रद्धा से भरकर बोले—

“माधव, कृपया मुझे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का महत्व बताइए। मैं इसकी कथा (Ekadashi Katha) सुनना चाहता हूं।”

अर्जुन द्वारा अनुनय पूर्वक प्रश्न किए जाने पर श्री कृष्णचंद जी कहते हैं, “प्रिय अर्जुन, फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस Ekadashi Vrat को करने वाला सदा विजयी रहता है। हे अर्जुन, तुम मेरे प्रिय सखा हो, अत: मैं इस व्रत की कथा तुमसे कह रहा हूं। आज तक इस व्रत की कथा मैंने किसी को नहीं सुनाई। तुमसे पूर्व केवल देवर्षि नारद ही इस कथा को ब्रह्मा जी से सुन पाए हैं। तुम मेरे प्रिय हो, इसलिए तुम मुझसे यह कथा सुनो।

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त्रेतायुग की बात है, जब भगवान श्रीराम, जो कि विष्णु के अंशावतार थे, अपनी पत्नी सीता को खोजते हुए वन-वन भटक रहे थे। इसी यात्रा के दौरान, उन्हें अपने परम भक्त जटायु मिले। जटायु जी ने भगवान श्रीराम को बताया कि रावण माता सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया है। उनके संघर्षपूर्ण प्रयास के बावजूद, रावण ने उन्हें परास्त कर दिया। जटायु जी की यह सूचना पाकर श्रीराम अत्यंत व्यथित हो गए और उन्हें गले लगाकर मोक्ष प्रदान किया। इसके बाद, श्रीराम सागर तट की ओर बढ़े, जहाँ वे लंका जाने का उपाय सोचने लगे।

Ekadashi Katha के अनुसार, जटायु से सीता माता का पता जानकर श्री रामचन्द्र जी अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण की तैयारी करने लगे, परंतु सागर के जलजीवों से भरे दुर्गम मार्ग से होकर लंका पहुंचना एक चुनौती बन गया।

भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में दुनिया के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते थे, अत: वे एक आम मानव की भांति चिंतित हो गए। जब उन्हें सागर पार जाने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था, तब उन्होंने लक्ष्मण से पूछा, “हे लक्ष्मण, इस सागर को पार करने का कोई उपाय मुझे सूझ नहीं रहा। यदि तुम्हारे पास कोई उपाय है तो बताओ।”

श्री रामचन्द्र जी की बात सुनकर लक्ष्मण बोले, “प्रभु, आपसे कोई भी बात छिपी नहीं है, आप स्वयं सर्वसामर्थ्यवान हैं। फिर भी मैं कहूंगा कि यहाँ से आधा योजन दूर परम ज्ञानी वकदाल्भ्य मुनि का निवास है। हमें उनसे ही इसका हल पूछना चाहिए।”

भगवान श्रीराम, लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया। मुनिवर ने कहा, “हे राम, आप अपनी सेना समेत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें। इस Ekadashi Vrat के प्रभाव से आप निश्चित ही समुद्र को पार कर रावण को पराजित कर देंगे।”

जब श्रीराम और उनकी सेना ने समुद्र तट पर एकादशी व्रत किया, व्रत के प्रभाव से वानर सेना ने विशाल पत्थरों से पुल का निर्माण किया जो जल में डूबे नहीं। इस पुल को रामसेतु कहा जाता है। इसके बाद, भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई की और विभीषण को राजा घोषित करने का संकल्प लिया। श्री रामचन्द्र जी ने तब उक्त तिथि के आने पर अपनी सेना समेत मुनिवर के बताए विधान के अनुसार Ekadashi Vrat रखा और सागर पर रामसेतु का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की। श्रीराम और रावण के मध्य भयंकर युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया। इस प्रकार विजया एकादशी के पुण्य प्रभाव से श्रीराम ने विजय प्राप्त की।

युद्ध में भगवान श्रीराम ने रावण और उसकी सेना का संहार किया। इसी व्रत के प्रभाव से विजय प्राप्त हुई, इसलिए इसे विजया एकादशी कहा जाता है।

Ekadashi Katha पढ़ने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है। यह कथा मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे नकारात्मक विचार दूर होते हैं। भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एकादशी व्रत और इसकी कथा का पाठ अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इसके अलावा, यह धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ाने के साथ-साथ सुख-समृद्धि और कष्टों से मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

Vijaya Ekadashi 2025: विजया एकादशी का पुण्य फल

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विजया एकादशी का व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में रखा जाता है। Ekadashi February 2025 में यह व्रत 24 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा। 

इस Ekadashi Vrat को करने से सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत करने वाला व्यक्ति जीवन में हर कार्य में सफलता प्राप्त करता है।

विजया एकादशी व्रत विधि

  1. व्रत के दिन प्रात: स्नान कर भगवान विष्णु का पूजन करें।
  2. फलाहार और सात्त्विक भोजन ग्रहण करें।
  3. दिनभर भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करें।
  4. रात्रि को जागरण करें और एकादशी कथा (Ekadashi Katha) सुनें।
  5. द्वादशी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में भोजन कर व्रत का पारण करें।

विजया एकादशी का व्रत करने से सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं और व्यक्ति को विजय प्राप्त होती है। इस ekadashi vrat को करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। जो भी भक्त Ekadashi Katha सुनता और इस व्रत को विधिपूर्वक करता है, वह निश्चित ही अपने सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।

2 thoughts on “Ekadashi Katha : Vijaya Ekadashi 2025: विजया एकादशी की पौराणिक कथा और महत्व”

  1. बहुत ही सुंदर कथा। जय श्री कृष्ण। राधे राधे 🙏🏻🙏🏻

  2. दिल को छू लेने वाली कहानी। इस पावन एकादशी पर हरि बोल और जय श्री राम

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