Apara Ekadashi:  अपरा एकादशी व्रत कथा.

Apara Ekadashi

क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा दिन भी होता है जब स्वयं भगवान विष्णु अपने भक्तों को आलिंगन करने के लिए झुकते हैं?
एक ऐसा व्रत, जो न केवल इस जीवन के पापों से मुक्त करता है, बल्कि हजारों जन्मों के दोषों को भी हर लेता है।
यह कोई साधारण उपवास नहीं — यह आत्मा की मुक्ति का सेतु है।
यह है Apara Ekadashi  (अपरा एकादशी) ।

Apara Ekadashi (अपरा एकादशी) की महिमा और पौराणिक प्रसंग

Apara Ekadashi

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को Apara Ekadashi  (अपरा एकादशी)  कहा जाता है।
‘अपरा’ — अर्थात जिसका कोई पार नहीं।
इस व्रत की महिमा इतनी अपार है कि इसका पुण्य गंगा-स्नान, काशी-वास, गौदान, स्वर्णदान और अन्नदान — इन सबका संयुक्त फल देती है।
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि जो व्यक्ति श्रद्धा से इस दिन व्रत करता है, वह अनेक जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।
उसका जीवन निर्मल हो जाता है, जैसे चंद्रमा की शीतल किरणों में स्नान कर रहा हो।

इस दिन का व्रत गुरु अपमान, झूठी गवाही, व्यभिचार, चोरी जैसे महापापों तक का नाश कर देता है।

श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित एक कथा इस व्रत की शक्ति को उजागर करती है:

कथा – राजा महोदय की मुक्ति

प्राचीन काल की बात है। एक धर्मपरायण, सत्यनिष्ठ और प्रजावत्सल राजा हुआ करते थे जिनका नाम था महीध्वज। वे सदैव धर्म के मार्ग पर चलते थे, यज्ञ, दान, तप, और भक्तिभाव में लीन रहते थे। उनका जीवन एक आदर्श राजा के रूप में जाना जाता था।

लेकिन दुर्भाग्यवश, राजा महीध्वज का एक छोटा भाई भी था जिसका नाम था वज्रध्वज। वह राजा के विपरीत स्वभाव का था — अधर्मी, क्रूर और ईर्ष्यालु। उसे अपने बड़े भाई की ख्याति, धर्मनिष्ठा और लोगों का प्रेम बिल्कुल सहन नहीं होता था। धीरे-धीरे उसके मन में द्वेष की आग भड़क उठी।

एक दिन, रात के अंधेरे में, जब सब सो रहे थे, वज्रध्वज ने अपने ही भाई राजा महीध्वज की हत्या कर दी। उसने शव को छुपाने के लिए जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया, ताकि किसी को इस पापकर्म का पता न चल सके।

लेकिन चूंकि राजा की मृत्यु अकाल और हिंसा से हुई थी, उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली। वे प्रेत योनि में चले गए। उनकी आत्मा उसी पीपल के पेड़ पर भटकती रही, और वहां आने-जाने वाले राहगीरों को डराने और कष्ट देने लगी। राजा महीध्वज की आत्मा पीड़ा में थी, वे न मुक्ति पा रहे थे, न चैन।

समय बीतता गया। एक दिन एक महान तपस्वी, धौम्य ऋषि, उस पीपल वृक्ष के पास से गुजर रहे थे। राजा की प्रेतात्मा ने उन्हें भी परेशान करने का प्रयास किया। परन्तु ऋषि कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे। वे तपोबल से संपन्न, ज्ञानी और करुणामयी थे। उन्होंने तुरंत उस आत्मा को अपने योगबल से वश में कर लिया और उससे इस उत्पात का कारण पूछा।

राजा महीध्वज ने अपनी करुणामय कहानी सुनाई — अपने छोटे भाई के द्वारा हत्या और अकाल मृत्यु की पीड़ा। यह सुनकर धौम्य ऋषि की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने महसूस किया कि यह आत्मा केवल पीड़ा में है, उसका अपराध नहीं, बल्कि उसका बलिदान था।

ऋषि ने प्रेतात्मा को सांत्वना दी और कहा कि वे उसे मुक्ति दिलाएंगे। इसके लिए उन्होंने अपरा एकादशी (Apara Ekadashi ) का व्रत करने का संकल्प लिया — यह वही तिथि थी जो पापों की मुक्ति और आत्मा की शुद्धि के लिए जानी जाती है।

Apara Ekadashi  (अपरा एकादशी)  के दिन, धौम्य ऋषि ने विधिपूर्वक उपवास, जप, पुजा, और ध्यान किया। उन्होंने व्रत का सम्पूर्ण पुण्य राजा महीध्वज की आत्मा को समर्पित किया। उसी क्षण एक अद्भुत चमत्कार हुआ — एक दिव्य प्रकाश पीपल वृक्ष के ऊपर प्रकट हुआ, और राजा की आत्मा उस तेज में लीन होकर प्रेत योनि से मुक्त हो गई।

राजा की आत्मा ने शांत भाव से ऋषि को धन्यवाद कहा और स्वर्ग को प्राप्त हुआ। उस दिन के बाद उस स्थान से प्रेतबाधा भी समाप्त हो गई।

कल्पना कीजिए वह क्षण — जब एक पितृ आत्मा, पापों की जंजीरों से छूटकर प्रभु के तेजस्वी प्रकाश में लीन हो जाती है।
यही है Apara Ekadashi  (अपरा एकादशी)  की शक्ति — आत्मा का उद्धार, परमात्मा से मिलन।

निष्कर्ष : Apara Ekadashi की शक्ति

यह व्रत सिर्फ उपवास नहीं, बल्कि आत्मा की पुनः प्रभु से जुड़ने की प्रक्रिया है।
यह दिन है — पश्चाताप, शुद्धिकरण, और परम शांति का।
यदि आप जीवन में भटक गए हैं, तो यह एक सुनहरा अवसर है लौट आने का।
Apara Ekadashi  (अपरा एकादशी)  जैसे कहती है —
आओ मेरे द्वार पर। मैं तुम्हें प्रभु के चरणों तक पहुँचा दूँगी।”

जो इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करता है, हरे कृष्ण महा मंत्र का , राधा राधा नाम का  जप करता है, वह एक दिव्य आध्यात्मिक कवच में सुरक्षित हो जाता है।

तो इस Apara Ekadashi  (अपरा एकादशी) , चलिए बीते हुए पापों को भुला दें,
उन जंजीरों को काट दें जो हमें नीचे खींचती हैं,
और प्रेम, भक्ति व शांति के मार्ग पर भगवान श्रीकृष्ण की ओर एक बार फिर बढ़ चलें।

धन्यवाद। राधा राधा ।हरे कृष्णा।

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