Chhath Puja भारत का एक प्राचीन और अद्भुत पर्व है जो सूर्य देव और Chhathi Maiya की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि Chhathi Maiya (षष्ठी देवी) बालकों की रक्षक देवी हैं और वे सूर्य देव की बहन मानी जाती हैं। इस दिन व्रती महिलाएँ कठोर उपवास रखकर नदी या तालाब के तट पर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण यह पर्व Chhath Puja के नाम से प्रसिद्ध हुआ । Chhath Puja हमें सिखाती है कि जीवन में अनुशासन, श्रद्धा और कृतज्ञता ही सच्ची आध्यात्मिकता का आधार हैं।
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ToggleChhath Puja: जानें छठी मइया कौन हैं और क्यों पूजी जाती हैं
भगवती “षष्ठी”, मंगलचण्डिका तथा देवी मनसा — ये सभी देवियाँ मूल प्रकृति की कलाएँ मानी गई हैं। मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण ही इन्हें ‘षष्ठी देवी’ कहा जाता है।
ये बालकों की अधिष्ठात्री देवी हैं और उन्हें ‘विष्णुमाया’ तथा ‘बालदा’ नामों से भी जाना जाता है। मातृकाओं में इनका प्रसिद्ध नाम ‘देवसेना’ है।
उत्तम व्रत का पालन करनेवाली यह साध्वी देवी भगवान कार्तिकेय की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त करती हैं। भगवान कार्तिकेय इन्हें प्राणों से भी अधिक प्रेम करते हैं।
बालकों को दीर्घायु बनाना, उनका भरण-पोषण तथा रक्षण करना — Chhathi Maiya का स्वाभाविक गुण है। ये सिद्धयोगिनी देवी अपने योगबल से सदा बच्चों के समीप विराजमान रहती हैं और उन्हें हर प्रकार की विपत्ति से बचाती हैं।
इस प्रकार Chhathi Maiya अपने भक्तों की रक्षा और कल्याण में सदैव साथ रहती हैं, यही आशीर्वाद हमें हर वर्ष Chhath Puja पर प्राप्त होता है।
राजा प्रियव्रत और Chhathi Maiya का दिव्य प्रसंग
Chhath Puja के पावन अवसर पर हमें छठी माता और उनके आशीर्वाद की गाथाएँ याद आती हैं। इसी पवित्र समय की कथा है प्रियव्रत नामक एक महान राजा की जिनके पिता स्वायम्भुव मनु थे। वे विवाह करना नहीं चाहते थे, परंतु ब्रह्माजी की आज्ञा और सत्प्रयत्नों के प्रभाव से उन्होंने विवाह स्वीकार किया।
विवाह के पश्चात भी लंबे समय तक उन्हें संतान-सुख प्राप्त नहीं हुआ। तब कश्यप मुनि ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने का निर्देश दिया। राजा की प्रिय पत्नी का नाम मालिनी था। यज्ञ के उपरांत मुनि ने रानी को चरु (पवित्र आहुति) प्रदान की। चरु-भक्षण करने के बाद रानी गर्भवती हुईं, और समय आने पर उन्होंने सूर्य के समान तेजस्वी बालक को जन्म दिया।
परंतु दुर्भाग्यवश वह बालक जन्म के समय ही मृत था। उसे देखकर समस्त रानियाँ, बंधु-बांधव और दासियाँ विलाप करने लगीं। रानी मालिनी शोक से मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ीं, और राजा प्रियव्रत गहन दुःख में डूब गए। वे अपने मृत पुत्र को छाती से लगाकर श्मशान भूमि की ओर चले गए।
वहाँ उस एकांत स्थली में, राजा की आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी, तभी उन्हें आकाश में एक दिव्य विमान दिखाई दिया। वह विमान शुद्ध स्फटिकमणि के समान चमकदार था, अमूल्य रत्नों से अलंकृत, रेशमी वस्त्रों और पुष्पमालाओं से सुसज्जित था। उस पर अद्भुत चित्रों की शोभा थी और उसका प्रकाश चारों ओर फैला हुआ था।
दुःख हरने वाली Chhathi Maiya का अलौकिक दर्शन
विमान पर एक अत्यंत सुंदर, तेजोमयी और करुणामयी देवी विराजमान थीं। उनका वर्ण श्वेत चंपा के पुष्प के समान उज्ज्वल, मुख पर मृदु मुस्कान, और नेत्रों में करुणा की गहराई थी। उनका सौंदर्य और तेज देखकर राजा का हृदय श्रद्धा से भर उठा। देवी रत्नमय आभूषणों से अलंकृत, सदा यौवनमयी और योगशास्त्र में पारंगत प्रतीत हो रही थीं।
ऐसा लग रहा था मानो स्वयं करुणा ही मूर्त रूप में प्रकट हो गई हो। राजा ने तुरंत बालक को भूमि पर रखा और विनम्र भाव से देवी की पूजा और स्तुति करने लगे।
तभी देवसेना, अर्थात् भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की प्रिय — भगवती षष्ठी देवी अपने तेज और कृपा से आलोकित रूप में प्रकट हुईं। उनका आगमन केवल राजा के शोक को हरने के लिए नहीं, बल्कि समस्त संसार को यह सन्देश देने के लिए था कि बालकों की रक्षा करने वाली, कृपालु और सिद्धयोगिनी Chhathi Maiya सदैव अपने भक्तों के समीप रहती हैं।
भगवती देवसेना का परिचय और उपदेश
Chhathi Maiya का शांत और दिव्य विग्रह ग्रीष्मकालीन सूर्य के समान तेजस्वी प्रतीत हो रहा था। उन्हें प्रसन्न देखकर राजा प्रियव्रत ने विनम्रतापूर्वक पूछा —“हे सुशोभने! आप कौन हैं? आपके पति कौन हैं, और आप किसकी कन्या हैं? आप तो स्त्रियों में सर्वथा आदर और वंदना की पात्रा प्रतीत होती हैं।”
तब देवर्षि नारद ने कहा — “राजन्! वे देवी कोई और नहीं, बल्कि जगत् को मंगल प्रदान करने वाली तथा देवताओं की सहायिका — भगवती देवसेना हैं। पूर्वकाल में जब देवता दैत्यों से पराजित हो चुके थे, तब इन देवी ने स्वयं को सेना रूप में परिवर्तित कर, देवताओं के पक्ष में युद्ध किया था। उनकी कृपा और शक्ति से देवता पुनः विजयी हुए, इसी कारण इन्हें ‘देवसेना’ कहा गया।”
यह सुनकर महाराज प्रियव्रत ने Chhathi Maiya की स्तुति की। तब भगवती देवसेना ने कोमल मुस्कान के साथ कहा —
“राजन्! मैं ब्रह्मा की मानसी कन्या हूँ। जगत पर शासन करने वाली मुझ देवी का नाम देवसेना है। विधाता ने मुझे उत्पन्न कर भगवान कार्तिकेय को अर्पित किया, और इस प्रकार मैं समस्त मातृकाओं में प्रसिद्ध हुई।
कर्म का प्रभाव: देवी Chhathi Maiya द्वारा राजा को दिया गया अनमोल संदेश
Chhathi Maiya कहती है -मुझे भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की पतिव्रता भार्या होने का गौरव प्राप्त है।मुझे भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की पतिव्रता भार्या होने का गौरव प्राप्त है। और क्योंकि मैं मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई हूँ, इसीलिए संसार में मेरा नाम ‘षष्ठी देवी’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
Chhathi Maiya ने आगे कहा — “मेरे प्रसाद से पुत्रहीन व्यक्ति को योग्य संतान, प्रिय-विहीन जन को प्रिय, दरिद्र को धन, और कर्मशील पुरुष को उसके कर्मों का शुभ फल प्राप्त होता है।
राजन्! सुख, दुःख, भय, शोक, हर्ष, सम्मान, संपत्ति और विपत्ति — ये सभी कर्म के अनुसार ही मनुष्य को प्राप्त होते हैं। अपने ही कर्म के प्रभाव से कोई पुरुष अनेक पुत्रों का पिता बनता है, तो कोई पुत्रहीन रह जाता है। किसी का पुत्र अल्पायु होता है, तो किसी का दीर्घजीवी।
मनुष्य का गुणी होना, निर्धन होना, अनेक पत्नियों का स्वामी होना या निरपत्नी रहना, रूपवान या रोगी होना — सब कर्म का ही परिणाम है।
अतः राजन्! यह निश्चित जानो कि इस जगत में कर्म ही सर्वाधिक बलवान है — यही श्रुतियों में कहा गया सत्य है।”
षष्ठी देवी का आशीर्वाद और बालक का पुनर्जीवन
ऐसा कहकर Chhathi Maiya ने मृत बालक को उठा लिया और अपने महान ज्ञान और दिव्य शक्ति के प्रभाव से खेल–खेल में ही उसे पुनः जीवित कर दिया। अब राजा प्रियव्रत ने देखा तो बालक सुवर्ण के समान तेजस्वी और हंसमुख प्रतीत हो रहा था।
जैसे ही महाराज बालक की ओर देख रहे थे, देवी देवसेना बालक को लेकर आकाश में जाने को तैयार हो गईं। यह दृश्य देखकर राजा का कण्ठ, ओष्ठ और तालू सूख गए, और उन्होंने पुनः देवी की स्तुति और वंदना की।
संतुष्ट होकर देवी ने राजा से कहा — “राजन्! तुम स्वायम्भुव मनु के पुत्र हो और त्रिलोकी में तुम्हारा शासन है। तुम सर्वत्र Chhath Puja कराओ और स्वयं भी करो, तब मैं तुम्हें कमल के समान मुखवाले इस मनोहर बालक का आशीर्वाद दूँगी। इसका नाम सुब्रत होगा। इसमें सभी गुण, विवेक और दिव्यता विद्यमान रहेगी।
यह बालक भगवान नारायण का कलावतार तथा प्रधान योगी होगा। इसे अपने पूर्वजन्म की बातें याद रहेंगी। यह क्षत्रियों में श्रेष्ठ और सौ अश्वमेध यज्ञ करने वाला होगा। सभी इसका सम्मान करेंगे।
उत्तम बल और शक्तियों से सम्पन्न यह बालक ऐसे शोभायमान होगा जैसे लाखों हाथियों में सिंह। यह धनी, गुणी, शुद्ध, विद्वानों का प्रिय, और योगियों, ज्ञानियों एवं तपस्वियों का सिद्धरूप होगा। त्रिलोकी में इसकी कीर्ति फैलेगी और यह सबको सम्पत्ति, गुण और कल्याण प्रदान कर सकेगा।”
भगवती देवसेना का आशीर्वाद
इस प्रकार कहने के पश्चात् भगवती Chhathi Maiya ने राजा प्रियव्रत को उनका पुत्र प्रदान किया। राजा ने Chhath Puja और वरदान की सभी बातें स्वीकार कर लीं। यों देवी ने उन्हें उत्तम वर प्रदान करके स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया।
राजा प्रसन्न मन होकर मंत्रियों के साथ अपने महल लौट आए और अपने पुत्र से संबंधित इस दिव्य वृत्तांत को सबको सुनाया। नारद! यह प्रिय वचन सुनकर स्त्री और पुरुष सभी अत्यंत संतुष्ट हो गए। राजा ने सर्वत्र पुत्र प्राप्ति के उपलक्ष्य में माड़लिक कार्य आरंभ कराया, भगवती की पूजा की और ब्राह्मणों को धनदान किया।
तबसे प्रत्येक मास में शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि के अवसर पर भगवती षष्ठी का महोत्सव (Chhath Puja ) यत्नपूर्वक मनाया जाने लगा। बालकों के प्रसवगृह में छठे दिन, इक्कीसवें दिन और अन्नप्राशन के शुभ अवसरों पर भी देवी की पूजा होने लगी। Chhath Puja उत्सव सर्वत्र फैल गया, और स्वयं राजा प्रियव्रत भी नियमित रूप से पूजा करते थे।
Chhathi Maiya का ध्यान और Chhath Puja विधान
भगवती देवसेना का ध्यान, पूजन और स्तोत्र का विवरण कौथुम शाखा में वर्णित है ।
पूजा स्थल: शालग्राम की प्रतिमा, कलश, वट वृक्ष का मूलभाग, या दीवार पर पुतली बनाकर।
ध्यान: देवी प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई शुद्ध स्वरूपिणी हैं। विद्वान पुरुष इस प्रकार ध्यान करें —
पूजा विधि: ध्यान करने के पश्चात् Chhathi Maiya को पुष्प अर्पण करें। फिर मूल मंत्र से पूजा करें।
सामग्री: पाद्य, अर्घ्य, आचमन, गंध, धूप, दीप, विविध नैवेद्य और सुन्दर फल।
मंत्र: उपचार अर्पण से पूर्व “३७ हीं षष्ठीदेव्ये स्वाहा” उच्चारण करना अनिवार्य है।
अष्टाक्षर महामंत्र: पूजक पुरुष को यथाशक्ति इसका जप भी करना चाहिए।
सुंदर पुत्र, कल्याण और दया प्रदान करने वाली Chhathi Maiya जगत की माता हैं। इनका वर्ण श्वेत चंपक के समान उज्ज्वल, और ये रत्नमय भूषणों से अलंकृत हैं। मैं इन परम पवित्र स्वरूपिणी भगवती देवसेना (Chhathi Maiya) की उपासना करता हूँ।
इस प्रकार ऋद्धि-सिद्धि और पुत्रवृद्धि की प्राप्ति के लिए विद्वान पुरुष इस विधि से षष्ठी देवी की पूजा और ध्यान करें।
Chhathi Maiya स्तोत्र और उसका महत्त्व
तदनंतर, मन को शांत करके भक्तिपूर्वक स्तुति करने के पश्चात् देवी को प्रणाम करें। यह उत्तम स्तोत्र फल प्रदान करने वाला है और सामवेद में वर्णित है।
जो पुरुष उपर्युक्त अष्टाक्षर महामंत्र का एक लाख जप करता है, उसे अवश्य ही उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है — ऐसा ब्रह्माजी ने कहा है।
मुनिवर! अब सुनो सम्पूर्ण शुभकामनाओं को पूरा करने वाला स्तोत्र। नारद! यह स्तोत्र सभी का मनोरथ पूर्ण करने वाला और वेदों में गोप्य है।
षष्ठी देवी स्तोत्र
देवी को नमस्कार है।
महादेवी को नमस्कार है।
भगवती सिद्धि एवं शांति को नमस्कार है।
शुभा, देवसेना और भगवती षष्ठी को बार-बार नमस्कार है।
वरदा, पुत्रदा, धनदा, सुखदा एवं मोक्षप्रदा भगवती षष्ठी को बार-बार नमस्कार है।
मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने वाली भगवती सिद्धा को नमस्कार है।
माया, सिद्धयोगिनी, सारा, शारदा और परादेवी नामों से शोभा पाने वाली भगवती षष्ठी को बार-बार नमस्कार है।
बालकों की अधिष्ठात्री, कल्याण प्रदान करने वाली, कल्याण स्वरूपिणी एवं कर्मों के फल प्रदान करने वाली देवी षष्ठी को बार-बार नमस्कार है।”
Chhathi Maiya की स्तुति और भक्तों पर उनका प्रभाव
स्वामी कार्तिकेय को प्राणप्रिय देवी षष्ठी को बार–बार नमस्कार। Chhathi Maiya अपने भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देने वाली और सभी कार्यों में पूजा की अधिकारिणी हैं। मनुष्य जो उन्हें सदा वंदना करते हैं और देवताओं की रक्षा में तत्पर रहते हैं, उन शुद्धसत्त्वस्वरूपा देवी Chhathi Maiya को बार–बार नमस्कार।
वे हिंसा और क्रोध से रहित हैं। बार–बार नमस्कार उस देवी को जिनसे प्रार्थना की जाती है —
“सुरेश्वरी! मुझे धन दो, प्रिय पत्नी दो और पुत्र प्रदान करने की कृपा करो।
महेश्वरी! मुझे सम्मान दो, विजय दो और मेरे शत्रुओं का संहार कर दो।
धन और यश प्रदान करने वाली भगवती षष्ठी को बार–बार नमस्कार।
सुपूजिते! भूमि दो, प्रजा दो, विद्या दो, कल्याण और जय प्रदान करो।
तुम षष्ठीदेवी को बार–बार नमस्कार।”
इस प्रकार स्तुति करने के पश्चात् महाराज प्रियत्रत ने Chhathi Maiya के प्रभाव से यशस्वी पुत्र प्राप्त किया।
एक वर्ष तक स्तोत्र श्रवण करने के अद्भुत फल
ब्रह्मन्! जो पुरुष इस स्तोत्र को एक वर्ष तक श्रवण करता है, यदि वह अपुत्री हो तो दीर्घजीवी और सुंदर पुत्र प्राप्त कर लेता है। जो एक वर्ष तक भक्तिपूर्वक Chhathi Maiya की पूजा करके स्तोत्र सुनता है, उसके सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं।
महान वन्ध्या भी इसके प्रसाद से संतान–प्राप्ति की योग्यता प्राप्त कर लेती है। Chhathi Maiya की कृपा से वह गुणी, विद्वान, यशस्वी, दीर्घायु एवं श्रेष्ठ पुत्र की जननी बनती है।
काकवन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्री भी एक वर्ष तक इसका श्रवण करने के फलस्वरूप Chhathi Maiya के प्रभाव से पुत्रवती हो जाती है। यदि बालक रोगग्रस्त हो जाए तो माता–पिता एक मास तक इस स्तोत्र का श्रवण करें, तो Chhathi Maiya की कृपा से बालक की व्याधि शान्त हो जाती है।