हम जीवन में बहुत सी इच्छाओं और मनोरथों के पीछे भागते रहते हैं — धन, सुख, सम्मान, आध्यात्मिक उन्नति। लेकिन गुरुजी कहते हैं कि सच्चा मार्ग केवल भगवत स्मरण (Remembrance of God) में है। जब मन निरंतर भगवत स्मृति में लीन रहता है, तो जीवन की सभी लौकिक और पारलौकिक इच्छाएँ स्वतः पूर्ण हो जाती हैं।
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Toggleजन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का साधन: केवल भगवत स्मरण
हमें लगता है कि हमें भागवतिक मनोरथ भी नहीं रखना चाहिए। लौकिक मनोरथों की तो बात ही छोड़ दें। हमारे हृदय में केवल एक ही आंतरिक अभिलाषा होनी चाहिए — कि अब हमारा इस झूठे संसार में जन्म न हो, और हम निरंतर भगवत स्मृति में लीन रहें।
यस्य स्मरण मात्रेण जन्म संसार वन्दनात्।
विमुच्यते नमस्तुभ्यं विष्णवे प्रभविष्णवे।।
जिनके स्मरण मात्र से हम जन्म और मृत्यु के भवसागर से पार पा जाते हैं, उस अच्युत को नमन है। जिनका स्वरूप परमात्मा है — विष्णु की जय हो!
हमें भगवत प्राप्ति का विशेष मनोरथ भी नहीं रखना चाहिए। बस यही एक साधारण लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण अभ्यास — भगवत स्मरण (Remembrance of God) — हमारे जीवन का केंद्र होना चाहिए। इसी स्मरण से लौकिक और पारलौकिक सभी मनोरथ अपने आप सिद्ध हो जाते हैं।
स्मरण की यह आवश्यकता हमारे लिए जीवन की सबसे बड़ी साधना है।
No Need to Become a Monk – सन्यास नहीं, उद्देश्य परिवर्तन चाहिए
देश परिवर्तन, भेष परिवर्तन की कोई जरूरत नहीं है। जरूरत है उद्देश्य परिवर्तन की। अभी इसी क्षण नियम लो कि मैं एक सेकंड भी भगवान का भी बिस्मरण नहीं करूंगा।
निरंतर नाम चल रहा है (Name Chanting) इससे बढ़कर कोई साधुता नहीं इससे बढ़कर कोई त्याग नहीं। कहां भाग कर जाओगे जैसे सर्वत्र हरि है ऐसे सर्वत्र माया है। आप अपने घर को भगवान का घर मान लीजिए। आप अपनी देह को भगवान के चरणों में समर्पित कर दीजिए और नाम स्मरण (Remembrance of God) कर दीजिए तो आप तीर्थ में ही वास कर रहे हैं। आपका घर ही तीर्थ है और अहम पूर्वक (घमंड से ) तीर्थ में वास करने पर भी वो लाभ नहीं मिलेगा, जो दैन्यता पूर्वक रहने से मिलेगा। निरंतर भजन परायण रहो।
नाथ सकल संपदा तुम्हारी।
मैं सेवकु समेत सुत नारी॥
भावार्थ- हे नाथ! यह सारी संपदा आपकी है। मैं तो स्त्री-पुत्रों सहित आपका सेवक हूँ। हे दीनबंधु दीनानाथ! हम पर दया किजिए।
भजन ((Remembrance of God) नहीं तो संत वेश रखकर के भी लाभ नहीं मिल पाएगा। और भजन है तो पैंट शर्ट, पजामा, कुर्ता में भी भगवत प्रेमी हो। देखो बंधन वहां है जहां मैं अपना मानता हूं वही बंधन है अगर मैं प्रभु का मानू तो क्या बंधन है ये मेरा घर नहीं इसलिए मुझे बंधन नहीं है क्योंकि श्री जी का है ये श्री जी का है वो श्री जी का है ये सब श्री जी का है तो आप क्यों नहीं मान सकते सब प्रभु का है।
प्रभु में समर्पित होने पर बंधन नहीं है। सब कुछ प्रभु को समर्पित कर दो अंदर से और नाम जप (Name Chanting) करो सब ठीक हो जाएगा। पति में भगवान की भावना दृढ़ कर लीजिए निश्चित भगवत प्राप्ति होगी क्योंकि भगवान है गुरु, गुरु में भगवान, पति में भगवान, पुत्र में भगवान, सर्वत्र भगवान। अनुसूया जी ने अपने पति अत्री जी पर भगवत बुद्धि रखने के कारण ब्रह्मा विष्णु और महेश को ६, ६ महीने के बालक बना दिए। सावित्री जी ने सत्यवान को यमराज जी से वापस ले आई। ये कोई छोटी मोटी आराधना नहीं है। अपने पति में और आसक्त हो जाओ- कि मेरे भगवान इस रूप में आए। कुछ छोड़ने की जरूरत नहीं है। जोड़ने की जरूरत है। प्रभु से जोड़ने की जरूरत है। देखो ऐसे बर्फी खाओ तो आनंद नहीं आएगा लेकिन वही वर्फी राधा वल्लभ जी को भोग लगाओ तो बड़े-बड़ों का मन प्रसाद पाने का मन ललचाता है- भैया थोड़ा सा देना जरा। क्यों? वो प्रभु से जुड़ गया। जो वस्तु प्रभु से जुड़ गई तो उसका महत्व हो गया।