एक बार ऋषियों ने सूतजी से Kartik Maas का महत्व जानना चाहा। सूतजी ने बताया कि यही प्रश्न देवर्षि नारद ने स्वयं ब्रह्मा जी से किया था- पितामह! सब मासों में श्रेष्ठ मास, सब देवताओं में उत्तम देवता और सब तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ कौन है?
ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया: “कार्तिक मास (Kartik Maas) सब मासों में श्रेष्ठ है, भगवान विष्णु सब देवताओं में उत्तम हैं और बदरिकाश्रम (Badrinath) सब तीर्थों में श्रेष्ठ है। ये तीनों कलयुग में अत्यंत दुर्लभ हैं। इतना कहकर ब्रह्मा जी ने भगवान राधाकृष्ण का स्मरण किया और नारद जी से कहा – “बेटा! तुमने समस्त लोकों का उद्धार करने के लिए यह बहुत अच्छा प्रश्न किया है।
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Toggleकार्तिक मास का महत्व और विशेषताएं (Kartik Maas ka Mahatva)
भगवान विष्णु का प्रिय मास: Karthik Month भगवान विष्णु को सदा ही प्रिय है। इस माह में भगवान विष्णु के उद्देश्य से जो कुछ पुण्य किया जाता है, उसका नाश कभी नहीं देखता।
मनुष्य योनि का महत्व: नारद जी! यह मनुष्य योनि दुर्लभ है। इसे पाकर मनुष्य को अपने को इस प्रकार रखना चाहिए कि उसे पुनः नीचे न गिरना पड़े।
देवताओं का सान्निध्य: इस महीने में तैंतीसों देवता मनुष्य के सन्निकट हो जाते हैं और इसमें किए हुए स्नान, दान, भोजन, व्रत, तिल, धेनु, सुवर्ण, रजत, भूमि, वस्त्र आदि के दानों को विधिपूर्वक ग्रहण करते हैं।
अक्षय फल की प्राप्ति: कार्तिक मास (Kartik Maas) में जो कुछ दिया जाता है, जो भी तप किया जाता है, उसे सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु ने अक्षय फल देने वाला बतलाया है। भगवान विष्णु के उद्देश्य से मनुष्य जो कुछ दान देता है, उसे वह अक्षय रूप में प्राप्त करता है।
अन्नदान का विशेष महत्व: उस समय अन्नदान का महत्त्व अधिक है। उससे पापों का सर्वथा नाश हो जाता है। जो कार्तिक मास (Kartik Maas) प्राप्त होने पर पराये अन्न को सर्वथा त्याग देता है, वह अतिकृच्छ्र व्रत का फल प्राप्त करता है।
सर्वश्रेष्ठ की तुलना: कार्तिक मास (Karthik Month) के समान कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं है। इसी प्रकार अन्नदान के सदृश दूसरा कोई दान नहीं है।
कार्तिक मास में क्या करें? (Kartik Maas mein Kya Karen)
पूजन और स्मरण: मुनिश्रेष्ठ! पाप से डरने वाले मनुष्य को कार्तिक मास (Kartik Maas) में शालिग्राम शिला का पूजन और भगवान वासुदेव का स्मरण अवश्य करना चाहिए।
नाम स्मरण: दान आदि करने में असमर्थ मनुष्य प्रतिदिन प्रसन्नतापूर्वक नियम से भगवन्नामों का स्मरण करे।
जागरण (रात्रि जागरण): कार्तिक मास (Kartik Maas) में भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए विष्णु-मंदिर अथवा शिव-मंदिर में रात को जागरण करे। शिव और विष्णु का मंदिर न हो तो किसी भी देवता की मंदिर में जागरण करे। यदि दुर्गम वन में स्थित हो या विपत्ति में पड़ा हो तो पीपल के वृक्ष की जड़ में अथवा तुलसी के वन में जागरण करे। भगवान विष्णु के समीप उन्हीं के नामों और लीला-कथाओं का गायन करे।
Kartik Maas-विशेष स्थितियों में उपाय
स्नान न कर सकने पर: यदि आपत्ति में पड़ा हुआ मनुष्य कहीं अधिक जल न पावे अथवा रोगी होने के कारण जल से स्नान न कर सके तो भगवान के नाम से मार्जन मात्र (शरीर पर जल छिड़कना) कर ले।
उद्यापन में असमर्थता: व्रत में स्थित हुआ पुरुष यदि उद्यापन की विधि करने में असमर्थ हो, तो व्रत की समाप्ति के बाद उसको पूर्णता के लिए केवल ब्राह्मणों को भोजन करावे।
दीपदान में असमर्थता: जो स्वयं दीपदान करने में असमर्थ हो, वह दूसरे के बुझे हुए दीप को जला दे अथवा हवा आदि से यत्नपूर्वक उसकी रक्षा करे।
पूजा न कर सकने पर: भगवान विष्णु की पूजा न हो सकने पर तुलसी अथवा आंवले का भगवद्बुद्धि से पूजन करे। मन-ही-मन भगवान विष्णु के नाम का निरन्तर कीर्तन (Name Chanting) करता रहे।
Kartik Maas में गुरु सेवा का महत्व
गुरु के आदेश देने पर उनके वचन का कभी उल्लंघन न करे।
यदि अपने ऊपर दुःख आदि आ पड़े तो गुरु की शरण में जाए। गुरु की प्रसन्नता से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है।
परम बुद्धिमान कपिल और महातपस्वी सुमति भी अपने गुरु गौतम की सेवा से अमरत्व को प्राप्त हुए हैं।
इसलिए विष्णु-भक्त पुरुष कार्तिक मास (Kartik Month) में हर प्रकार से प्रयत्न करके गुरु की सेवा करे। ऐसा करने से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
दानों का श्रेष्ठतम क्रम और अन्नदान का महत्व
सब दानों से बढ़कर कन्यादान है।
उससे अधिक विद्यादान है।
विद्यादान से भी गोदान का महत्व अधिक है।
और गोदान से भी बढ़कर अन्नदान है; क्योंकि यह समस्त संसार अन्न के आधार पर ही जीवित रहता है।
इसलिए कार्तिक मास में अन्नदान अवश्य करना चाहिए।
कार्तिक व्रत के लाभ और विशेष कर्म
कार्तिक के नियम का पालन करने पर अवश्य ही भगवान विष्णु का सारूप्य एवं मोक्षदायक पद प्राप्त होता है।
कार्तिक मास (Kartik Maas) में ब्राह्मण पति-पत्नी को भोजन कराना चाहिए, चन्दन से उनका पूजन करना चाहिए, अनेक प्रकार के वस्त्र, रत्न और कम्बल देने चाहिए। इसके साथ ही रूईदार बिछावन, जूता और छाता भी दान करने चाहिए।
कार्तिक मास (Kartik Maas) में भूमि पर शयन करने वाला मनुष्य युग-युग के पापों का नाश कर डालता है।
जो कार्तिक मास में भगवान विष्णु के आगे अरुणोदय काल में जागरण करता है और नदी में स्नान, भगवान विष्णु की कथा का श्रवण, वैष्णवों का दर्शन तथा नित्यप्रति भगवान विष्णु का पूजन करता है, उसके पितरों का नरक से उद्धार हो जाता है।
भगवान Vishnu की भक्ति की महिमा
अहो! जिन लोगों ने भक्तिपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन नहीं किया, वे इस कलियुग की कन्दरा में गिरकर नष्ट हो गए, लुट गए।
जो मनुष्य कमल के एक फूल से देवताओं के स्वामी भगवान कमलापति (Lord Vishnu) की पूजा करता है, वह करोड़ों जन्मों के पापों का नाश कर डालता है।
मुनिश्रेष्ठ! जो कार्तिक मास में एक लाख तुलसीदल चढ़ाकर भगवान विष्णु की पूजा करता है, वह एक-एक दल पर मुक्ता (मोती) दान करने का फल प्राप्त करता है।
जो भगवान के श्रीअंगों से उतारी हुई प्रसादस्वरूपा तुलसी (Tulsi) को मुख में, मस्तक पर और शरीर में धारण करता है तथा भगवान के निर्माल्यों (पूजा के बाद के फूल आदि) से अपने अंगों का मार्जन करता है, वह मनुष्य सम्पूर्ण रोगों और पापों से मुक्त हो जाता है।
भगवत्पूजन सम्बन्धी प्रसादस्वरूप शंख का जल, भगवान को भक्ति, निर्माल्य-पुष्प आदि, चरणोदक, चन्दन और धूप ब्रह्महत्या का नाश करने वाले हैं।
भगवान के नाम जप और स्मरण की अतुलनीय महिमा
भगवत नाम स्मरण की महिमा का वर्णन मैं (Brahma) भी नहीं कर सकता।
गोविन्द गोविन्द हरे मुरारे गोविन्द गोविन्द मुकुन्द कृष्ण।
गोविन्द गोविन्द रथाङ्गपाणे गोविन्द दामोदर माधवेति ॥
- नित्यप्रति भागवत के आधे श्लोक या चौथाई श्लोक का भी कार्तिक मास में श्रद्धा और भक्ति के साथ अवश्य पाठ करे।
- जिन्होंने भागवत पुराण का श्रवण नहीं किया, पुराणपुरुष भगवान नारायण की आराधना नहीं की और ब्राह्मणों के मुख रूपी अग्नि में अन्न की आहुति नहीं दी, उन मनुष्यों का जन्म व्यर्थ ही गया।
- देवर्षे! जो मनुष्य कार्तिक मास में प्रतिदिन गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) का पाठ करता है, उसके पुण्यफल का वर्णन करने की शक्ति मुझमें नहीं है। गीता के समान कोई शास्त्र न तो हुआ है और न होगा। एकमात्र गीता ही सदा सब पापों को हरने वाली और मोक्ष देने वाली है। गीता के एक अध्याय का पाठ करने से मनुष्य घोर नरक से मुक्त हो जाते हैं, जैसे जड़ ब्राह्मण मुक्त हो गया था।
शालिग्राम दान का अंतिम उपदेश
- सात समुद्रों तक की पृथ्वी का दान करने से जो फल प्राप्त होता है, शालिग्राम (Shaligram) शिला दान करने से मनुष्य उसी फल को पा लेता है।
- अतः कार्तिक मास में स्नान तथा दानपूर्वक शालिग्राम शिला का दान अवश्य करना चाहिये।
कार्तिक व्रत में त्याज्य वस्तुएं (Forbidden Items during Kartik Vrat)
कार्तिक मास आने पर निषिद्ध वस्तुओं का त्याग करना चाहिए। निम्नलिखित वस्तुएं कार्तिक व्रत में वर्जित हैं:
सामान्य त्याज्य: तेल लगाना, परान्न भोजन करना, तेल खाना, बहुबीज फलों का सेवन, चावल और दाल।
विशेष त्याज्य सब्जियाँ अन्न: लौकी, गाजर, बैंगन, बनभंटा (ऊंटकटारा), बासी अन्न, भुसीड़ मसूर, दुबारा भोजन, मदिरा, कांसे के पात्र में भोजन, छत्राक (मशरूम), कांजी, दुर्गंधित पदार्थ।
त्याज्य अन्न: समुदाय (संस्था) का अन्न, वेश्या का अन्न, सूतक का अन्न, श्राद्ध का अन्न, रजस्वला का दिया हुआ अन्न, जननाशौच का अन्न और लसोड़े का फल।
पत्तल का नियम: निषिद्ध पत्तलों में भोजन न करे! महुआ, केला, जामुन और पलाश- इनके पत्तों में भोजन करना चाहिए। कमल के पत्ते पर कदापि भोजन न करे।
अन्य त्याज्य: प्याज, सिंघाड़ा, सेज, बेर, राई, नशीली वस्तु, चिउड़ा, नालिका, मूली, कुम्हड़ा, कैथ।
आचार-विचार के विशेष नियम (Behavioral Rules)
निन्दा वर्जित: देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गौ, व्रती, स्त्री, राजा और महात्माओं की निन्दा न करे।
संगति वर्जित: रजस्वला, चाण्डाल, म्लेच्छ, पतित, व्रतहीन, ब्राह्मण-द्वेषी और वेद-बहिष्कृत लोगों से व्रती मनुष्य बातचीत न करे।
तेल का नियम: कार्तिक में केवल नरक चतुर्दशी, Naraka Chaturdashi (दिवाली के एक दिन पहले) को ही शरीर में तेल लगाना चाहिए। अन्य किसी दिन तेल न लगाएं।
निष्कर्ष
कार्तिक मास की महिमा वास्तव में अपरंपार और वर्णन से परे है। यह मास मनुष्य को जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य – मोक्ष – की प्राप्ति का सरलतम मार्ग दिखाता है। इस दिव्य मास में थोड़ा सा भी प्रयत्न, छोटे से छोटा दान या नाम स्मरण भी भगवान विष्णु की असीम कृपा दिलाने के लिए पर्याप्त है। आइए, इस पावन कार्तिक मास का पूर्ण लाभ उठाएं, श्रद्धा भाव से इन विधियों का पालन करें और अपने जीवन को धन्य एवं मोक्षमय बनाएं।
- जो कार्तिक मास (Kartik Maas) में उत्तम व्रत का पालन करता है, वह सब पापों से मुक्त हो भगवान विष्णु के सालोक्य को प्राप्त होता है।
- मास व्रत की समाप्ति होने पर उस व्रत की पूर्णता के लिए श्रेष्ठ ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
- जो तीन वर्षों तक काशी में रहकर भक्तिपूर्वक सांगोपांग कार्तिक व्रत का अनुष्ठान करता है, उसे सम्पत्ति, संतति, यश तथा धर्म की वृद्धि को प्राप्त करके इस लोक में ही उस व्रत का प्रत्यक्ष फल दिखाई देता है।
- कार्तिक व्रत के ये नियम अत्यंत विस्तृत और शास्त्र-सम्मत हैं। इनका यथासंभव पालन करने से भक्त पर भगवान विष्णु की अपार कृपा बरसती है और उसे जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आप सभी को कार्तिक मास की हार्दिक शुभकामनाएं
हरे कृष्णा
राधे राधे
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