भारत वर्ष में बारह महीने में बारह चौथ के व्रतों का अपना एक विशेष विधान है। हर चौथ की अपनी एक अलग कहानी और पूजन विधि है, लेकिन इन सभी में karva chauth का व्रत सुहागिनों के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। हर पत्नी की यही कामना होती है कि उसका जीवनसाथी लंबी उम्र तक स्वस्थ और सुखी रहे। यही प्रेम और स्नेह karva chauth ka vrat रखने की मुख्य प्रेरणा है।
आइए, आज विस्तार से जानते हैं karwa chauth की पूरी कहानी, इसके महत्व और karva chauth ki puja की सरल विधि।
Table of Contents
Toggleकरवा चौथ कब मनाई जाती है? (Karva Chauth Kab Manate Hai?)
हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को karva chauth का व्रत मनाया जाता है। यह व्रत पतियों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखा जाता है।
“करवा चौथ” दो शब्दों से मिलकर बना है —
करवा (Karva) का अर्थ है मिट्टी का घड़ा या पात्र, जिसे पूजा में उपयोग किया जाता है।
चौथ (Chauth) का अर्थ है पूर्णिमा के चार दिन बाद का चौथा दिन।
इसलिए Karwa Chauth का शाब्दिक अर्थ हुआ — “मिट्टी के करवे से जुड़ा चौथा दिन”।
करवा चौथ व्रत कथा (Karva Chauth Ki Kahani)
karwa chauth mata ki katha की शुरुआत एक साहूकार के घर से होती है। उस साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। बेटी का नाम करवा था और उसका विवाह हो चुका था। एक बार वह अपने मायके में ठहरी हुई थी। उसके सातों भाई उसे बहुत प्यार करते थे।
एक दिन कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी थी। करवा और घर की सभी बहुओं ने karva chauth ka vrat रखा हुआ था। शाम को जब सभी भाई भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन करवा को भी खाने के लिए बुलाया।
करवा ने जवाब दिया, “भाई, अभी तो चंद्रमा देव नहीं निकले हैं। जब चाँद निकलेगा, मैं उन्हें अर्घ्य देकर अपना व्रत पूरा करूंगी, तब ही भोजन करूंगी।”
बहन को भूखा देख सबसे छोटे भाई को चिंता हुई। उसने एक चाल सोची। वह दूर एक पेड़ पर जाकर अग्नि जलाई और एक छलनी के पीछे से उसकी लौ को चाँद का प्रतीक बनाकर बहन के पास ले आया। उसने कहा, “बहन, देखो! चाँद निकल आया है। अब तुम व्रत खोलकर भोजन कर लो.”
करवा ने सच मान लिया और अपनी भाभियों को भी बुलाया। पर भाभियों ने कहा, “ननद, यह तो तुम्हारा चाँद है, हमारा नहीं।” करवा अकेले ही भोजन करने बैठ गई।
जैसे ही उसने पहला ग्रास मुंह में रखा, उसे छींक आ गई। दूसरा ग्रास लिया तो उसमें बाल निकला। तभी, उसके ससुराल से संदेश आया कि उसके पति का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया है।
तब उसकी एक भाभी ने सच्चाई बताई, “तुम्हारे साथ ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तुमने झूठे चाँद को देखकर karva chauth ka vrat तोड़ दिया। इसी का यह दुष्परिणाम है।”
पति को जीवनदान
करवा तुरंत ससुराल पहुँची, लेकिन तब तक उसके पति ने प्राण त्याग दिए थे। करवा ने हिम्मत नहीं हारी। उसने प्रतिज्ञा की कि वह अपने पतिव्रत के बल पर पति को जीवित करके रहेगी। उसने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया और एक झोपड़ी में रहकर तपस्या शुरू कर दी।
पूरे एक साल बाद, फिर से वही karwa chauth का दिन आया। करवा ने फिर से निर्जल व्रत रखा और माँ जगदंबा से प्रार्थना की।
माँ प्रसन्न हुईं और बोलीं, “तुम्हारी सबसे छोटी भाभी के अंगूठे से निकला रक्त-अमृत तुम्हारे पति को जीवित कर सकता है।”
करवा ने ऐसा ही किया। छोटी भाभी के अंगूठे से निकले रक्त-अमृत को पति के मुंह में डालते ही, वह “जय गणेश, जय गौरी” कहता हुआ जीवित हो उठा।
इस प्रकार, karva chauth ki kahani हमें पतिव्रत धर्म की शक्ति और अटूट विश्वास का संदेश देती है।
करवा चौथ पूजा का महत्व (Karva Chauth Ki Puja)
karva chauth ki puja का विशेष महत्व है। इस दिन सुहागिनें दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को चंद्रोदय के बाद विधि-विधान से karva chauth ki puja करती हैं और चाँद को अर्घ्य देकर ही व्रत खोलती हैं। यह व्रत पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है।
Karva Chauth की पूजा विधि
सुबह की तैयारी
स्नान और सरगी:
ब्राह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और सूर्योदय से पहले सरगी (फलाहार) का सेवन करें। यह आपके व्रत को सफलता और शुभता प्रदान करता है।
व्रत का संकल्प:
ईश्वर को प्रणाम करके निर्जला व्रत रखने का संकल्प लें। यह व्रत आपके घर और जीवन में सुख-शांति लाता है।
शाम की पूजा विधि
पूजा स्थान की तैयारी:
शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल पर गेरू से फलक बनाएं और उस पर करवा का चित्र लगाएं। आप प्रिंटेड कैलेंडर का उपयोग भी कर सकते हैं। पूजा के लिए चौक स्थापित करें।
देवी-देवताओं की स्थापना:
स्थापित चौक पर भगवान गणेश, माता पार्वती और भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र रखें।
करवे की पूजा:
एक मिट्टी के करवे में गंगाजल, चावल और सिक्का रखें।
दूसरे करवे में अनाज, गुलगुले या बताशे रखें।
चावल के आटे में हल्दी मिलाकर करवे रंग लें।
दोनों करवों पर दीपक जलाकर चौकी पर स्थापित करें।
एक करवा पार्वती माता का और दूसरा आपका होता है, जिससे आप चांद को अर्घ्य देंगे।
सामग्री अर्पित करना:
माता पार्वती को सुहाग की सामग्री अर्पित करें।
व्रत कथा का श्रवण:
भगवान गणेश, पार्वती, शिव और चंद्रमा का ध्यान करते हुए करवा चौथ की व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
करवा बदलना:
परंपरा के अनुसार सास या अन्य सुहागिन महिला से 7 बार करवा बदलकर आशीर्वाद लें।
चंद्रमा के दर्शन और अर्घ्य
चंद्रमा को अर्घ्य:
चंद्रमा निकलते ही मिट्टी के करवे से अर्घ्य दें।
छलनी से दर्शन:
छलनी में जलता दीपक रखकर पहले चंद्रमा को देखें, फिर उसी छलनी से अपने पति का मुख देखें।
व्रत का पारण:
पति के हाथों पानी पीकर व्रत खोलें और उनका आशीर्वाद लें।
अंतिम विधि
बायना देना:
पूजन में उपयोग की गई सुहाग की सामग्री और करवा अपनी सास को बायना के रूप में दें।
सात्विक भोजन:
इसके बाद पति के साथ सात्विक भोजन ग्रहण करें।
निष्कर्ष:
karva chauth का यह पावन व्रत और इसकी कहानी हर सुहागिन के हृदय में आस्था और प्रेम की अद्भुत भावना जगाती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची निष्ठा और श्रद्धा किस तरह हर मुश्किल को पार कर सकती है।
करवा चौथ की यह कहानी आपको कैसी लगी? नीचे कमेंट करके जरूर बताएं और इस ब्लॉग पोस्ट को अपने प्रियजनों के साथ साझा करें।
1. पूज्य Premanand Ji महाराज जी के अमृतमयी प्रवचनों को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध
“पूज्य Premanand Ji महाराज जी की वाणी” अनुभाग अवश्य देखें। यहाँ उनकी दिव्य शिक्षाओं और भक्ति से जुड़े अनेक प्रेरणादायक लेखों का संग्रह है।
2. यदि आप पूज्य Premanand Ji महाराज जी महाराज को स्वयं बोलते हुए सुनना चाहते हैं, तो
यहाँ क्लिक करें — उनके एक दुर्लभ और हृदयस्पर्शी प्रवचन को सुनने के लिए।