Nirjala Ekadashi Vrat Katha: निर्जला एकादशी

Nirjala Ekadashi

कल्पना कीजिए… तपता हुआ सूर्य सिर पर हो, लू की लहरें तन को झुलसा रही हों, और प्यास से गला सूख गया हो — फिर भी कोई साधक अडिग खड़ा हो, न जल की एक बूंद, न अन्न का एक कण… केवल एक नाम — ‘नारायण’। यह कथा है Nirjala Ekadashi ( निर्जला एकादशी ) की — वह दिव्य तिथि जब केवल शरीर नहीं, आत्मा तपती है। जब इंद्रियाँ मौन हो जाती हैं और मन पूर्ण समर्पण के साथ प्रभु की शरण में चला जाता है। 

यही वह एकादशी है, जब महाबली भीमसेन — जो भोजन के बिना रह ही नहीं सकते थे — उन्होंने स्वयं से युद्ध किया। उन्होंने भूख, प्यास और थकान को पराजित कर, केवल श्री हरि की भक्ति में लीन होकर यह कठिन व्रत किया। यह केवल निर्जल रहने का नियम नहीं था, यह अपनी इच्छाओं, वासनाओं और अहंकार को त्यागने की तपस्या थी। जब भक्ति इतनी प्रबल हो जाए कि शरीर की सीमाएं भी व्यर्थ लगें — तब ईश्वर स्वयं निकट आ जाते हैं। यही है Nirjala Ekadashi ( निर्जला एकादशी ) का रहस्य: एक दिन का उपवास, जो जन्मों का कल्याण कर देता है

Nirjala Ekadashi

Nirjala Ekadashi ( निर्जला एकादशी ), जिसे भीम एकादशी भी कहा जाता है, वर्ष की समस्त एकादशियों का सार है। यह ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है और इसे सबसे कठिन एवं पुण्यदायक व्रत माना जाता है। इस दिन भक्त केवल भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए अन्न, फल, यहां तक कि जल का भी त्याग करता है।

कथा महाभारत काल से जुड़ी है। एक दिन भीमसेन ने महर्षि वेदव्यास से कहा—
“गुरुदेव, युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी एकादशी का व्रत करते हैं, परंतु मैं अधिक भूख के कारण व्रत नहीं कर पाता। क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मैं भी समस्त एकादशियों का पुण्य प्राप्त कर सकूं?”

व्यासदेव ने उत्तर दिया—
“हे वायुपुत्र! यदि तुम वर्षभर की 24 एकादशियों का पुण्य एक ही दिन में पाना चाहते हो तो ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जल रहकर भगवान विष्णु का व्रत करो। इस दिन अन्न, फल और जल तक का त्याग करना होता है और केवल श्री हरि का स्मरण करना होता है।”

भीमसेन के लिए यह कठिन था, परंतु उन्होंने प्रण लिया कि वे इस व्रत को अवश्य करेंगे। उन्होंने भीषण गर्मी में बिना अन्न-जल ग्रहण किए, Nirjala Ekadashi ( निर्जला एकादशी ) का कठोर व्रत किया। उनका शरीर कांप उठा, होठ सूख गए, परंतु उनका हृदय श्री हरि की भक्ति से भर गया।

अंततः द्वादशी तिथि पर जब उन्होंने जल ग्रहण किया, तो आकाश से पुष्पवर्षा हुई और देवताओं ने घोषणा की—
“हे भीम! तुमने समस्त एकादशियों का पुण्य प्राप्त किया है। तुम विजयी हुए हो।”

इस प्रकार, Nirjala Ekadashi ( निर्जला एकादशी ) केवल एक व्रत नहीं, आत्मा की शुद्धि का तप है। यह इंद्रियों पर नियंत्रण और अहंकार के त्याग का अवसर है।

Nirjala Ekadashi : निर्जला एकादशी कथा का निष्कर्ष

Nirjala Ekadashi ( निर्जला एकादशी ) केवल एक व्रत नहीं, बल्कि आत्मा की गहन तपस्या और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की पहचान है। भीमसेन जी की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति में शरीर की सीमाएं मायने नहीं रखतीं, बल्कि इच्छाओं और अहंकार का त्याग ही असली विजय है। जब हम अपने मन को प्रभु के नाम में स्थिर कर लेते हैं, तब हमारी आत्मा शुद्ध होती है और ईश्वर की कृपा से हम सभी बाधाओं को पार कर जाते हैं। 

इस एक दिन के निर्जल व्रत में समाहित है सम्पूर्ण वर्ष की एकादशियों का फल, जो हमें आध्यात्मिक उन्नति का सर्वोच्च मार्ग दिखाता है। आइए, इस Nirjala Ekadashi ( निर्जला एकादशी ) पर हम भी अपने अंदर की तृष्णा और मोह-माया को त्यागकर, हृदय से भगवान विष्णु की भक्ति करें और अपने जीवन को पवित्रता, शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर करें।

धन्यवाद। राधा राधा ।हरे कृष्णा।

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2 thoughts on “Nirjala Ekadashi Vrat Katha: निर्जला एकादशी”

  1. जय श्री कृष्ण 🙏🏻🙏🏻 राधे राधे 🙏🏻🙏🏻

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