Prarabdh: प्रारब्ध कर्म- जीवन को सफल बनाने की अमूल्य सीख

Prarabdh

क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों कुछ लोग बिना मेहनत के सफल हो जाते हैं, जबकि कुछ लोग कड़ी मेहनत करने के बावजूद असफल रहते हैं? क्या यह सिर्फ भाग्य है, या इसके पीछे कोई गहरी आध्यात्मिक सच्चाई छिपी हुई है? यह लेख आपको प्रारब्ध (Prarabdh) और क्रियमाण कर्म (current actions) के रहस्यों को समझने में मदद करेगा और बताएगा कि कैसे सही कर्म करके हम अपने जीवन को बदल सकते हैं।

क्रियमाण (current actions) का मतलब नया कर्म होता है। ऐसा नहीं है कि आप केवल प्रारब्ध (Prarabdh) से ही चल रहे हो। प्रारब्ध (Prarabdh) से सिर्फ जानवर ही चलते हैं, लेकिन मनुष्य को क्रियमाण कर्म करने का अधिकार प्राप्त है। इसका अर्थ है कि हम नए कर्म कर सकते हैं और अपने भविष्य को सुधार सकते हैं।

हमारे जीवन में प्रयास का परिणाम प्रारब्ध (Prarabdh) से आता है। उदाहरण के लिए, यदि दो लोगों में से एक बहुत पढ़ाई करता है और दूसरा कम पढ़ता है, लेकिन फिर भी कम पढ़ने वाला पास हो जाता है और ज्यादा पढ़ने वाला असफल हो जाता है, तो यह प्रारब्ध का प्रभाव है।

इसी प्रकार, कुछ लोग कम प्रयास करते हैं और अमीर बन जाते हैं, जबकि कुछ लोग कड़ी मेहनत करने के बावजूद सफल नहीं हो पाते। यह प्रारब्ध (Prarabdh) का खेल है। व्यापार में भी ऐसा देखा जाता है कि कोई व्यक्ति बहुत मेहनत करने के बावजूद असफल रहता है, जबकि दूसरा बिना अधिक प्रयास के सफल हो जाता है। यह सब पिछले जन्मों के कर्मों के कारण होता है।

संचित कर्मों को नष्ट करने का उपाय

हमारे जन्म-जन्मांतर के संचित कर्मों का विशाल भंडार है। इनमें से कुछ कर्म Prarabdh (प्रारब्ध) के रूप में हमारे वर्तमान जीवन में सुख-दुःख के रूप में आते हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे अनाज के भंडार से कुछ मात्रा में गेहूं निकालकर उपयोग किया जाता है।

संचित कर्मों को जलाने के लिए हमें नए कर्म करने होंगे, और इसके लिए सबसे श्रेष्ठ उपाय है भजन।  भजन (Devotional Practices) और सत्कर्म के माध्यम से ही संचित कर्मों का नाश किया जा सकता है। इसके अलावा कोई अन्य तरीका नहीं है।

दान, तीर्थयात्रा, आदि सभी शुभ कर्मों में आते हैं, लेकिन जो निरंतर नाम जपते हैं – राधा राधा”, “कृष्ण कृष्ण”, “राम राम”, “हरि हरि , “शिव शिव” – उनके संचित कर्म शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। यदि हम दूसरों का कल्याण मानवीय दृष्टि से करते हैं, तो यह पुण्य बनता है, लेकिन यदि यह कार्य भगवान की भक्ति भाव से किया जाए, तो यह कर्म संस्कारों को नष्ट कर देता है। 

यदि हम पढ़ाई को भगवान की पूजा समझकर समर्पित करें, तो यह पूजा बन जाती है। लेकिन यदि हम पूजा धन कमाने के लिए करें, तो वह पूजा नहीं मानी जाएगी। इसी प्रकार, यदि किसान खेती को भगवान को अर्पित करके करता है, तो उसका कार्य भी पूजा बन जाता है।

महत्वपूर्ण यह नहीं कि हम क्या कर रहे हैं, बल्कि यह कि हमारा उद्देश्य क्या है। उद्देश्य से ही कर्म की महानता या नीचता तय होती है। यदि उद्देश्य महान है, तो कर्म भी महान होगा, और यदि उद्देश्य नीच है, तो महान कर्म भी नीच बन जाएगा। विद्यार्थी, डॉक्टर, शिक्षक, किसान – सभी को अपने कर्तव्य कर्म में लगे रहना चाहिए, क्योंकि यही ईश्वर का आदेश है

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।

ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।” (गीता 2.38)

अर्थात, सुख-दुःख, लाभ-हानि और जय-पराजय को समान समझकर कर्म करो, इससे पाप नहीं लगेगा।

पिछले जन्मों के कर्मों का प्रभाव

हमारे जन्म-जन्मांतर के संचित कर्मों का विशाल भंडार है, जिसे संचित कर्म कहा जाता है। इन संचित कर्मों में से कुछ कर्म प्रारब्ध (Prarabdh) के रूप में हमारे वर्तमान जीवन में प्रभाव डालते हैं। उदाहरण के लिए, अनाज के गोदाम से थोड़ा-थोड़ा गेहूं निकालकर पिसा जाता है, उसी प्रकार हमारे संचित कर्मों से प्रारब्ध निकलता है और हमें सुख-दुःख प्रदान करता है।

पूज्य गुरुजी के जन्म से ही उनकी किडनी फेल हो गई थी, जबकि उन्होंने इस जन्म में कोई भी पाप कर्म नहीं किया था। यह उनके पिछले जन्मों के कर्मों का परिणाम था। उनकी माता को पॉलीसिस्टिक किडनी रोग था, जो वंशानुगत रूप से गुरुजी को प्राप्त हुआ।

हम देखते हैं कि कई अच्छे लोग, जो धर्मपूर्वक जीवन जीते हैं, फिर भी कठिनाइयों में फंसे रहते हैं। इसका कारण उनके पिछले जन्मों के पाप कर्म होते हैं। वहीं कुछ लोग अनैतिक कार्य करने के बावजूद सुखमय जीवन जीते हैं, क्योंकि उनके पिछले पुण्य कर्म उनका साथ दे रहे होते हैं।

सही कर्म करने की आवश्यकता

हमें यह समझना चाहिए कि हम केवल इस जन्म के कर्मों का फल नहीं भोग रहे हैं, बल्कि हमारे पिछले जन्मों के कर्म भी हमारे जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। यदि हम इस जन्म में अच्छे कर्म करेंगे, तो हमारा अगला जीवन अवश्य सुखमय होगा।

हमारे कर्म ही हमारे जीवन का भविष्य तय करते हैं। यदि हम अपने पुराने कर्मों का फल भोगकर इस जन्म में अच्छे कर्म करेंगे, तो अगले जन्म में हमारा जीवन सुखद होगा। इसलिए, हमें अपने कर्मों के प्रति सजग रहना चाहिए और हर संभव प्रयास करना चाहिए कि हम गलत कर्मों से बचें और पुण्य कर्मों को अपनाएं।

सही कर्म और भजन से ही हम अपने प्रारब्ध को सुधार सकते हैं और अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।

यह विचार एकान्तिक वार्ता 830, पूज्य प्रेमानंद जी से प्रेरित है। अधिक जानने के लिए, यहां देखें: https://www.youtube.com/watch?v=egr3lC5245A&t=505s

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