क्या आपने कभी सोचा है कि सिर्फ ज्ञान सुनने से जीवन नहीं बदलता, बल्कि गहरा चिंतन और ध्यान ही असली परिवर्तन लाता है? जानिए Power of Meditation से जीवन में स्थायी शांति और सफलता कैसे पाएं
भगवान स्पष्ट रूप से कहते हैं कि केवल उपदेश सुनने से विषाद नहीं जाता, साधना करनी पड़ती है, भगवान का चिंतन करना पड़ता है। गीता में अर्जुन को निमित्त बनाकर हमें उपदेश दिया गया है। अर्जुन कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं, वे भगवान के सनातन सेवक हैं।
भगवान श्रीकृष्ण भगवद्गीता में कहते हैं:
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।
अपने मन को मुझमें लगाओ, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे प्रणाम करो। इस प्रकार, मुझमें पूर्ण रूप से तल्लीन होकर, तुम निश्चय ही मेरे पास आओगे
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः।।
अपने मन को मुझमें ही लगा दो, अपनी बुद्धि को मुझमें ही समर्पित कर दो। तब तुम निःसंदेह मुझमें ही निवास करोगे। इसमें कोई संशय नहीं है
जहाँ अर्जुन जी के चरण पड़ते हैं, वहीं भगवान श्रीकृष्ण विराजमान होते हैं, क्योंकि वे अपने भक्तों के प्रति असीम प्रेम और करुणा रखते हैं । यदि हम केवल उपदेश सुनकर चले जाएँ, चिंतन न करें, नाम न जपें, ध्यान न करें, तो वह उपदेश कुछ ही समय तक आनंद देगा। लेकिन यदि Power of Meditation (ध्यान की शक्ति) का सही उपयोग नहीं किया गया, तो संसार में फिर से मान-अपमान, लाभ-हानि, जय-पराजय के चक्र में फँसकर दुख का अनुभव होगा।
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TogglePower of Meditation: क्यों है चिंतन आवश्यक?
भगवान कहते हैं:
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
जो भक्त अनन्य भाव से मेरा चिंतन करते हैं और मेरी उपासना करते हैं, उनके योग (जो उनके पास नहीं है, उसे देने) और क्षेम (जो उनके पास है, उसकी रक्षा करने) का दायित्व मैं स्वयं उठाता हूँ
निरंतर ईश्वर का चिंतन करने से दुःख की कोई संभावना नहीं रहती। जब हमारा चिंतन संसार की ओर जाता है, तो हमें क्षणिक सुख मिलता है, लेकिन Power of Meditation का उपयोग करते हुए भगवान का चिंतन किया जाए, तो हमें अखंड आनंद की प्राप्ति होती है।
भगवान कहते हैं कि जो सुख हमें संसार में मिलता है, वह वास्तविक सुख नहीं होता, बल्कि दुख का ही एक रूप होता है। यदि हम विषय-भोगों से विरक्त हो जाएँ, तो दुख नाम की कोई वस्तु नहीं रह जाती।
पूर्णता कर्म से नहीं मिलती, पूर्णता चिंतन से मिलती है। बड़े-बड़े चक्रवर्ती सम्राट भी संतुष्ट नहीं हुए, लेकिन जिसने भगवान को पा लिया, वह पूर्ण संतुष्ट हो गया। Power of Meditation का सही उपयोग हमें मानसिक शांति और स्थायी सुख की ओर ले जाता है।
Power of Meditation: ईश्वर ही सबसे बड़े दाता हैं व्यक्ति को उचित व्यवसाय या नौकरी करनी चाहिए, लेकिन अत्यधिक लोभ नहीं करना चाहिए। भगवान का नाम “विश्वंभर” (संपूर्ण जगत का पालन करने वाला) है, वे सबको आवश्यकतानुसार देते हैं।
जथा लाभ संतोष सदा, काहू सों कछु न चहौगो।
अतः संतोष ही वास्तविक धन है। भगवान जो भी प्रदान करते हैं, उसमें हमें संतुष्ट रहना चाहिए।
शास्त्र प्रमाणित करते हैं कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं:
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।”
इसलिए, क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसका निर्धारण शास्त्रों के अनुसार होना चाहिए। शास्त्रों के द्वारा निर्धारित विधानों को जानकर ही तुम्हें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए
यदि हम शास्त्रों का अध्ययन नहीं कर सकते, तो सत्संग करें। सत्संग से हमें सही और गलत का निर्णय करने की शक्ति मिलती है। जब हम अंतर्मुखी होते हैं, तो भीतर से एक आवाज आती है कि कौन सा कार्य सही है और कौन सा गलत।
यदि हम लोभ, वासना, और भोग-वृत्ति के वशीभूत हो जाएँ, तो वही हमें पाप कर्म की ओर धकेलते हैं। लेकिन Power of Meditation का सही उपयोग हमें मोक्ष और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
चिंतन ही जीवन का सर्वोत्तम साधन
जो व्यक्ति भगवान की भक्ति, उनके नाम, उनकी लीलाओं का निरंतर चिंतन करता है, वह वास्तविक आनंद प्राप्त करता है। संसार में जितनी भी चीजें हैं – धन, परिवार, भोजन, आराम – ये सभी अन्य योनियों (पशु-पक्षियों) को भी प्राप्त होते हैं।
लेकिन मानव जन्म दुर्लभ इसलिए है कि वह भगवान का चिंतन कर सकता है और उनके साथ संबंध स्थापित कर सकता है। इसलिए हमें निरंतर भगवान का नाम जपते रहना चाहिए, उनकी कथाओं का श्रवण करना चाहिए, और उनके मार्ग पर चलना चाहिए। Power of Meditation का अभ्यास ही जीवन का सर्वोत्तम साधन और परम लक्ष्य है।
यह विचार एकान्तिक वार्ता 828, पूज्य प्रेमानंद जी से प्रेरित है। अधिक जानने के लिए, यहां देखें: https://www.youtube.com/watch?v=TB5JEJ8DvWk&t=1175s
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