Navadha Bhakti: ईश्वरीय प्रेम प्राप्ति का मार्ग | 9 Powerful Stages of Navadha Bhakti.

Navadha Bhakti

क्या आप जानते हैं कि Navadha Bhakti के 9 Steps आपके जीवन में चमत्कारी बदलाव ला सकते हैं? ये भक्ति के मार्ग को न केवल सरल बनाते हैं, बल्कि आपको परम शांति और दिव्यता का अनुभव भी कराते हैं! हम जन्म-जन्मांतर से अपनी मनोवृत्ति और पाँचों इंद्रियों को संसार की ओर लगाने के आदी हो गए हैं। अब समय आ गया है कि हम इन्हें परमात्मा की ओर मोड़ने का प्रयास करें। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:

“ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति।।” (गीता 15.7)

अर्थात, इस जीव लोक में प्रत्येक जीव मेरा ही सनातन अंश है, जो प्रकृति में स्थित होकर मन और पाँचों इंद्रियों को अपनी ओर खींचता है।

जिस प्रकार जल स्वाभाविक रूप से ढलान की ओर बहता है और उसे ऊपर ले जाने के लिए किसी यंत्र की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मन भी अपनी प्रवृत्ति के अनुसार नीचे की ओर जाता है। इसे ऊर्ध्वगामी बनाने के लिए हमें ‘मंत्र’ रूपी साधन की आवश्यकता होती है।

मंत्र-जप और नाम-स्मरण के निरंतर अभ्यास से हमारा मन, जो अब तक विषयों, शरीर, भोगों और सांसारिक मोह-माया में लिप्त था, परमात्मा की ओर उन्मुख होने लगता है। जब हमारा मन ईश्वर के प्रेम में डूब जाएगा, तब हमें गर्व होगा कि हम “श्रीजी के हैं और श्रीजी हमारे।”

Navadha Bhakti: प्रेम भक्ति प्राप्त करने का साधन

संसार से ऊपर उठने और ईश्वर की भक्ति प्राप्त करने के लिए साधना आवश्यक है। श्रीमद्भागवत महापुराण में Navadha Bhakti (नवधा भक्ति) का वर्णन किया गया है, जिसके माध्यम से प्रेम भक्ति प्राप्त होती है:

  • श्रवणं – भगवान की लीलाओं और कथाओं को सुनना।
  • कीर्तनं – भगवान के नाम और गुणों का गान करना।
  • स्मरणं – निरंतर भगवान का स्मरण करना।
  • पादसेवनम् – भगवान के चरणों की सेवा करना।
  • अर्चनं – भगवान की पूजा-अर्चना करना।
  • वन्दनं – भगवान को प्रणाम करना।
  • दास्यं – भगवान की आज्ञा का पालन करना।
  • सख्यम् – भगवान को अपना मित्र मानकर प्रेम करना।
  • आत्मनिवेदनम् – स्वयं को पूरी तरह से भगवान को समर्पित कर देना।

जब इन नौ प्रकार की भक्ति का पालन किया जाता है, तब प्रेम प्रकट होता है और भक्ति साकार होती है।

प्रेम भक्ति की स्थिति

जब प्रेम भक्ति प्राप्त हो जाती है, तो कोई प्रयास शेष नहीं रहता। जैसे सांसारिक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से विषयों का चिंतन करता है, वैसे ही भक्त अपने प्रियतम का निरंतर चिंतन करने लगता है। तब उसकी स्थिति कुछ इस प्रकार होती है:

“छिन छिन रुदन करंत, छिन गावत आनंद भरि,
छिन छिन हर हसन्त, यह जू कृपा हरिवंश की।

अर्थात, एक क्षण वह रोता है, तो अगले ही क्षण आनंद में भरकर गाने लगता है। कभी वह हँसता है, तो कभी प्रभु के संग विहार करता है। यह सब हरिवंश प्रभु की कृपा से संभव होता है।

Navadha Bhakti के लाभ और प्रभाव

  • सांसारिक इच्छाओं से मुक्ति: जब भक्त प्रेम भक्ति प्राप्त कर लेता है, तो वह किसी भी व्यक्ति, वस्तु या समाज से आसक्ति नहीं रखता।
  • परम शांति का अनुभव: भक्त हर क्षण अपने प्रभु को अपने साथ अनुभव करता है और आनंद में डूबा रहता है।
  • अहंकार का नाश: प्रेम भक्ति के माध्यम से मनुष्य का अहंकार समाप्त हो जाता है और वह पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित हो जाता है।

Navadha Bhakti साधना के लिए आवश्यक नियम

  • लंबे समय तक साधना करना – साधना के बिना मन की शुद्धि असंभव है।
  • शुद्ध आचरण रखना – मन और कर्म की पवित्रता आवश्यक है।
  • सात्विक भोजन करना – भगवान को भोग लगाए बिना भोजन न करें।
  • नाम-जप और कीर्तन करना – ईश्वर के नाम का निरंतर जाप करें।
  • कथा-श्रवण करना – भगवान की लीलाओं और कथाओं को सुनें।
  • हर समय शुद्धता बनाए रखना – बाहरी और आंतरिक शुद्धता परम आवश्यक है।

जब इन नियमों का पूर्ण रूप से पालन किया जाता है, तब हमें ईश्वरीय प्रेम रूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है और हमें वास्तविकता का अनुभव होता है कि हम श्रीजी के हैं और श्रीजी हमारे।

निष्कर्ष

इस संसार में जन्म लेने का मुख्य उद्देश्य परमात्मा की ओर लौटना है। इसके लिए मन को विषय-वासना से मुक्त कर Navadha Bhakti (नवधा भक्ति) के माध्यम से परमात्मा की ओर मोड़ने की आवश्यकता है। निरंतर साधना, भक्ति, जप, कीर्तन और कथा-श्रवण के माध्यम से हम प्रेम भक्ति को प्राप्त कर सकते हैं।

जब प्रेम प्रकट होता है, तब भक्त अपने प्रभु को हर क्षण अपने साथ अनुभव करता है और अनंत आनंद में लीन रहता है। यही सच्चा ईश्वरीय प्रेम (Divine Love) है, और यही हमारे जीवन का वास्तविक लक्ष्य होना चाहिए।

यह विचार एकान्तिक वार्ता 830, पूज्य प्रेमानंद जी से प्रेरित है। अधिक जानने के लिए, यहां देखें: https://www.youtube.com/watch?v=egr3lC5245A&t=505s

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