क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री विष्णु का एक दिव्य अंश एक ऋषि के घर जन्मा था, और उसकी नौ बहनें थीं जिन्होंने पूरे ऋषि परंपरा को आगे बढ़ाया? जानिए कर्दम ऋषि और देवहूति की उस वंशावली की अद्भुत कथा, जो ज्ञान और धर्म की नींव बन गई
कपिल मुनि का उद्गम: एक ऋषि कुल की कथा

भारतीय सनातन परंपरा में ऋषि-मुनियों की वंशावली केवल पारिवारिक इतिहास नहीं होती, बल्कि वह ज्ञान, भक्ति और धर्म की परंपरा को आगे बढ़ाने वाली होती है। ऐसी ही एक महान और दिव्य वंशावली है कर्दम ऋषि और माता देवहूति की, जिनके पुत्र श्री कपिल मुनि को भगवान श्री विष्णु का अंशावतार माना जाता है।
इस वंश की शुरुआत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी से होती है। ब्रह्मा जी के पुत्र स्वायम्भुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा से यह वंश आगे बढ़ता है। स्वायम्भुव मनु की पुत्री देवहूति का विवाह महान तपस्वी कर्दम ऋषि से हुआ। कर्दम ऋषि और माता देवहूति से दस संतानें उत्पन्न हुईं – जिनमें नौ कन्याएँ और एक पुत्र थे।
इन नौ कन्याओं का विवाह विभिन्न महान ऋषियों से हुआ, जिससे धर्म, ज्ञान और ऋषि परंपरा का विस्तार हुआ। कल्पना का विवाह मारीचि से, अनुसूया का अत्रि से, श्रद्धा का अंगिरा से, हविर्भू का पुलस्त्य से, गति का पुलह से, क्रिया का कृतु से, ख्याति का भृगु से, अरुन्धती का वशिष्ठ से और शांति का विवाह अथर्वा ऋषि से हुआ। ये सभी स्त्रियाँ केवल गृहस्थ जीवन की प्रतीक नहीं थीं, बल्कि वे सनातन संस्कृति की वाहक बनीं।
कर्दम ऋषि और देवहूति के एकमात्र पुत्र श्री कपिल मुनि को भगवान श्री विष्णु का अंशावतार माना जाता है। वे सांख्य योग के प्रवर्तक थे और उन्होंने श्रीमद्भागवत के तृतीय स्कंध में अपनी माता देवहूति को आत्मा, प्रकृति और पुरुष के रहस्यों का गूढ़ उपदेश दिया, जिसे ‘कपिलोपदेश’ कहा जाता है। कपिल मुनि का यह ज्ञान आज भी ध्यान, योग और दर्शन की दुनिया में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस परिवार की वंशावली केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि एक ऐसी परंपरा है जिसमें धर्म, ज्ञान, विज्ञान और सेवा का मेल है। यह दर्शाता है कि एक दिव्य परिवार कैसे संपूर्ण मानवता का मार्गदर्शन कर सकता है। कर्दम ऋषि और देवहूति की यह वंश परंपरा आज भी प्रेरणा का स्रोत है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो अध्यात्म, योग और दर्शन के मार्ग पर चलना चाहते हैं।